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उत्तराखंड का खतड़वा त्योहार: पशुओं की सेहत और ऋतु परिवर्तन का पर्व

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला खतड़वा त्योहार एक महत्वपूर्ण लोक पर्व है, जो पशुओं के स्वास्थ्य और ऋतु परिवर्तन से जुड़ा है। यह पर्व कन्या संक्रांति के दिन पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। इस दौरान, घर के लोग पशुओं की सफाई करते हैं, उन्हें स्नान कराते हैं और विशेष अग्नि मसाल का उपयोग करते हैं। शाम को बनाए गए पुतलों को जलाने की परंपरा भी है, जो पशुओं के रोगों को समाप्त करने का प्रतीक है। जानें इस पर्व के पीछे की कहानियाँ और इसके असली उद्देश्य के बारे में।
 

खतड़वा त्योहार का महत्व

खतड़वा त्योहार: उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला खतड़वा त्योहार एक महत्वपूर्ण लोक पर्व है। यह पर्व धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ पशुओं के स्वास्थ्य और मौसम के बदलाव से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। हर साल कन्या संक्रांति के दिन, यह पर्व पूरे कुमाऊं में पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। इस दिन, घर के लोग सुबह-सुबह उठकर पशुओं के रहने की जगह, जिसे गोठ कहा जाता है, की सफाई करते हैं। इसके बाद, पशुओं को स्नान कराया जाता है और उन्हें ताजा हरी घास खिलाई जाती है। इसके बाद, एक विशेष अग्नि मसाल तैयार किया जाता है, जिसे गोठ में घुमाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे वातावरण शुद्ध होता है और पशुओं को होने वाली बीमारियों का नाश होता है.


पुतला दहन की परंपरा

शाम के समय, घर के लोग दिन में बनाए गए पुतलों को जलाते हैं। इस प्रक्रिया में विशेष रूप से लड़कियां भाग लेती हैं। खतड़वा जलाने के लिए एक गोल ढांचा बनाया जाता है, जिसमें आग लगाकर नए अनाज जैसे धान और मक्का डाले जाते हैं। मान्यता है कि खतड़वा और बूढ़ी के एक साथ जलने से सभी पशु रोग समाप्त हो जाते हैं। इसके बाद, इस अग्नि की राख से सभी के माथे पर तिलक किया जाता है। पशुओं के बांधने के स्थान से ककड़ी तोड़कर उसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.


खतड़वा शब्द का अर्थ

खतड़वा शब्द की उत्पत्ति 'खतड़' से मानी जाती है, जिसका अर्थ है जानवरों का बिस्तर। ठंड के दिनों में सूखी घास बिछाकर जानवरों को गर्म रखने की परंपरा को इस शब्द का मूल आधार माना जाता है। इस पर्व से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहानी भी है, जिसमें कहा गया है कि एक कुमाऊंनी सेनापति ने गढ़वाली सेनापति को युद्ध में हराया और इस विजय के उपलक्ष्य में यह पर्व मनाया जाने लगा। हालांकि, इतिहासकार इस कहानी को काल्पनिक मानते हैं। उनका कहना है कि न तो ऐसी किसी लड़ाई का उल्लेख मिलता है और न ही इसमें बताए गए राजाओं का जिक्र इतिहास में है.


खतड़वा पर्व का असली उद्देश्य

इतिहासकारों के अनुसार, खतड़वा पर्व का मुख्य उद्देश्य केवल पशुओं के स्वास्थ्य की रक्षा करना और ऋतु परिवर्तन के समय शुद्ध वातावरण सुनिश्चित करना है.