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गुरुद्वारा पंजोखरा साहिब में तीन दिवसीय समागम का सफल समापन

गुरुद्वारा पंजोखरा साहिब में तीन दिवसीय समागम का सफल समापन हुआ, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस समागम का आयोजन श्री हरिकृष्ण साहिब जी के प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में किया गया था। श्रद्धालुओं ने माथा टेकने के साथ-साथ कीर्तन और कथा का आनंद लिया। समागम के दौरान नगर कीर्तन का आयोजन भी किया गया, जिसमें संगत ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
 

समागम का समापन और श्रद्धालुओं की उपस्थिति


  • हजारों श्रद्धालुओं ने गुरुघर में माथा टेका और आशीर्वाद प्राप्त किया।


अंबाला। गुरुद्वारा पंजोखरा साहिब में तीन दिन तक चले भव्य गुरमत समागम का समापन शनिवार को हुआ। यह समागम आठवें गुरु श्री हरिकृष्ण साहिब जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर आयोजित किया गया था। समागम के अंतिम दिन सुबह श्री अखंड पाठ साहिब जी का भोग डाला गया और दीवान की शुरुआत की गई। सुबह 9 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक दीवान सजाए गए। श्रद्धालु सुबह से ही माथा टेकने के लिए पहुंचने लगे।


अंबाला छावनी और आस-पास के क्षेत्रों से संगत नगर कीर्तन के रूप में गुरुद्वारा पंजोखरा साहिब पहुंची, जहां उनका स्वागत किया गया। रास्ते को सुंदर गेट से सजाया गया और जगह-जगह लंगर का आयोजन किया गया।



संगत की सुविधा और ट्रैफिक प्रबंधन के लिए गांव के युवा गुरुद्वारा साहिब के स्टाफ के साथ सेवा में लगे रहे। कुछ श्रद्धालु शुक्रवार रात से ही गुरुद्वारा में ठहरे हुए थे। रात को ज्ञानी अरविंदर सिंह ने संगत को रैन सबाई कीर्तन से निहाल किया।


शनिवार को संत हरी सिंह रंधावे वाले कथावाचक और अन्य ज्ञानी संगत को कथा कीर्तन से निहाल करते रहे। सुबह 11 बजे अमृत संचार का आयोजन किया गया, जिसमें स्टेज की सेवा हेड ग्रंथी बाबा बूटा सिंह ने की। इस सफल आयोजन में पंजोखरा साहिब की संगत, स्टाफ और एचएसजीएमसी सदस्यों का विशेष योगदान रहा।


तीन दिवसीय समागम की विशेषताएँ

तीन दिन के समागम में रागी, ढाडी और कथावाचकों ने संगत को कीर्तन और कथा से निहाल किया।



17 जुलाई को समागम के पहले दिन सुबह श्री अखंड पाठ साहिब की शुरुआत के साथ नगर कीर्तन सजाया गया। यह नगर कीर्तन विभिन्न स्थानों से होते हुए शाम को गुरुद्वारा पंजोखरा साहिब पहुंचा। 18 जुलाई को सुबह से दीवान शुरू हुए, जिसमें पंथ के रागी, ढाडी और कविशरी ने संगत को गुरबाणी कीर्तन और कथा से निहाल किया।



इस दौरान ज्ञानी भगत सिंह और अन्य ज्ञानी संगत को इतिहास से निहाल करते रहे। रात के दीवान में भी कई ज्ञानी संगत को गुरबाणी कीर्तन सुनाते रहे।