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बिहार में शिक्षक नियुक्ति और डोमिसाइल नीति: क्या है नीतीश सरकार की योजना?

बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने शिक्षक नियुक्तियों में डोमिसाइल नीति लागू करने का निर्णय लिया है, जिसमें 85 प्रतिशत पद बिहार के मूल निवासियों के लिए आरक्षित हैं। इस नीति का उद्देश्य राज्य में विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देना है। हालांकि, विपक्ष भी इस मुद्दे पर कोई ठोस योजना पेश करने में असफल रहा है। जानें इस नई नीति के पीछे की कहानी और बिहार की आर्थिक स्थिति के बारे में।
 

नीतीश कुमार सरकार की नाकामियां

बिहार में विकास और रोजगार सृजन के मोर्चे पर नीतीश कुमार की सरकार ने निराशाजनक प्रदर्शन किया है। ऐसे में, बासी भात में खुदा का साझा निकालना उनकी मजबूरी बन गई है। वहीं, विपक्ष भी बिहार के विकास के लिए कोई ठोस योजना पेश करने में असफल रहा है।


शिक्षक नियुक्ति में डोमिसाइल नीति का एलान

बिहार सरकार ने शिक्षक नियुक्तियों में डोमिसाइल नीति को लागू करने का निर्णय लिया है। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, एक लाख 10 हजार शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की जा रही है, जिसमें से 85 प्रतिशत पद बिहार के मूल निवासियों के लिए आरक्षित रहेंगे। पिछले महीने, राज्य सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों में से 35 प्रतिशत सीटें बिहार की महिलाओं के लिए निर्धारित की थीं।


नीतीश कुमार का निर्देश

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह शिक्षक भर्ती में बिहारियों को प्राथमिकता देने के लिए नियमों में बदलाव करे। इसके बाद, शिक्षा मंत्रालय ने तुरंत इस पर अमल करने की घोषणा की।


विपक्ष का वादा और सरकार की पलटी

नीतीश सरकार ने 2020 के विधानसभा चुनाव के समय इस नीति को लाने का वादा किया था, लेकिन बाद में इससे मुकर गई। अब, जब विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल ने सत्ता में आने पर डोमिसाइल नीति लागू करने का वादा किया है, तो नीतीश कुमार की सरकार ने फिर से इस पर विचार किया है।


बिहार की आर्थिक स्थिति

हाल ही में संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, बिहार की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है। 2011-12 के बाद से, यहां प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की दर धीमी हो गई है, जो पिछले 12 वर्षों में केवल 3.3 प्रतिशत रही है। अविभाजित बिहार में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के 70 प्रतिशत के बराबर थी, जो झारखंड के अलग होने के बाद घटकर 31 प्रतिशत रह गई। इस दौरान नीतीश कुमार ने राज्य की कमान संभाली है।


निष्कर्ष

इस प्रकार, विकास और रोजगार सृजन के मोर्चे पर नीतीश कुमार की सरकार नाकाम रही है। बासी भात में खुदा का साझा निकालना उनकी मजबूरी बन गई है, और दुर्भाग्य से विपक्ष भी बिहार के विकास के लिए कोई विश्वसनीय योजना पेश करने में असफल रहा है।