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पीएम विश्वकर्मा योजना: पारंपरिक कारीगरों के लिए नई पहचान और समर्थन

पीएम विश्वकर्मा योजना ने पारंपरिक कारीगरों को एक नई पहचान और समर्थन प्रदान किया है। इस योजना के तहत लाखों कारीगरों को ऋण, प्रशिक्षण और औजारों की सुविधा मिल रही है, जिससे उनकी कला को नया जीवन मिला है। जानें इस योजना की सफलता और इसके पीछे के कारणों के बारे में।
 

पारंपरिक कारीगरों को मिल रहा नया जीवन

भारत में सदियों से लोहार, कुम्हार, सुनार, बढ़ई और दर्जी जैसे कारीगर अपनी कला से समाज की आवश्यकताओं को पूरा करते आ रहे हैं। लेकिन समय के साथ, बड़े उद्योगों और मशीनों के कारण इनकी पारंपरिक कला का महत्व कम होता जा रहा था। इन्हीं अनाम 'विश्वकर्माओं' को मान्यता और समर्थन देने के लिए 'पीएम विश्वकर्मा योजना' की शुरुआत की गई है, जिसने अद्भुत परिणाम दिए हैं।


इस योजना के तहत, केवल दो वर्षों में 30 लाख से अधिक पारंपरिक कारीगर और शिल्पकार जुड़ चुके हैं। यह योजना केवल ऋण देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कारीगरों को हर तरह से सशक्त बनाने का एक संपूर्ण पैकेज है।


आसान ऋण: इस योजना की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि अब तक 47 लाख से अधिक ऋण स्वीकृत किए जा चुके हैं, जिनकी कुल राशि 41,188 करोड़ रुपये है। यह धन सीधे कारीगरों के पास पहुंचा है, जिससे वे अपने औजार खरीदने, अपनी दुकानों को सुधारने और अपने व्यवसाय को बढ़ाने में सक्षम हो सके हैं।


प्रशिक्षण और आधुनिक औजार: योजना के अंतर्गत कारीगरों को उनके काम के लिए आधुनिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसके साथ ही, नए और बेहतर औजार खरीदने के लिए सरकार से सहायता भी मिलती है, जिससे वे बाजार की मांग के अनुसार उच्च गुणवत्ता का सामान बना सकें।


पहचान और सम्मान: इस योजना से जुड़े हर कारीगर को एक पहचान पत्र और प्रमाण पत्र दिया जाता है, जिससे उन्हें 'विश्वकर्मा' होने पर गर्व महसूस होता है और उनके काम को औपचारिक पहचान मिलती है।