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बाबरी मस्जिद विध्वंस की 33वीं वर्षगांठ पर नए विवादों का जन्म

बाबरी मस्जिद के विध्वंस की 33वीं वर्षगांठ पर देश के विभिन्न हिस्सों में नए विवादों का जन्म हुआ है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक निलंबित विधायक ने बाबरी मस्जिद जैसा ढांचा बनाने की नींव रखी, जबकि हैदराबाद में एक संगठन ने स्मारक बनाने की घोषणा की। इन घटनाओं ने पुरानी बहस को फिर से जीवित कर दिया है, जिससे राजनीतिक हलचल और सामाजिक बहस तेज हो गई है। जानें इस मुद्दे पर क्या कहा जा रहा है।
 

बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर फिर से गरमाई बहस


हैदराबाद: बाबरी मस्जिद के ध्वंस की 33वीं वर्षगांठ पर देश के विभिन्न हिस्सों में इस मुद्दे ने एक बार फिर से तूल पकड़ लिया है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक निलंबित विधायक ने बाबरी मस्जिद के समान एक ढांचे की नींव रखी है।


इसके अलावा, हैदराबाद में एक संगठन ने बाबरी मस्जिद के नाम पर एक बड़ा स्मारक बनाने की योजना की घोषणा की है। इन घटनाओं ने पुरानी बहस को फिर से जीवित कर दिया है।


मुर्शिदाबाद में सियासी हलचल

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में तृणमूल कांग्रेस के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने शनिवार को बाबरी मस्जिद जैसी इमारत की आधारशिला रखी। उनके समर्थक ईंटें सिर पर रखकर जुलूस की शक्ल में निर्माण स्थल तक पहुंचे।


इस कार्यक्रम की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गए, जिसके बाद बंगाल की राजनीति में हलचल मच गई। कुछ लोग इसे वोट बैंक की राजनीति मान रहे हैं, जबकि अन्य इसे धार्मिक उकसावे के रूप में देख रहे हैं।


हैदराबाद में स्मारक का ऐलान

बाबरी विध्वंस की 33वीं बरसी के एक दिन बाद, हैदराबाद में तहरीक मुस्लिम शब्बान संगठन की सभा आयोजित की गई। संगठन के अध्यक्ष मुश्ताक मलिक ने घोषणा की कि ग्रेटर हैदराबाद में बाबरी मस्जिद का भव्य स्मारक बनाया जाएगा। इसके साथ ही, गरीबों और जरूरतमंदों के लिए कई कल्याणकारी संस्थाएं भी खोली जाएंगी।


मुश्ताक मलिक ने कहा कि शिलान्यास के दिन सभी धर्मों के लोग उपस्थित रहेंगे, क्योंकि मस्जिद नफरत का प्रतीक नहीं, बल्कि प्यार और भाईचारे का प्रतीक है।


पुराने मुद्दे पर नई बहस

सभा में मुश्ताक मलिक ने एक पुराना तर्क दोहराया। उन्होंने कहा कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद के लिए मुगल बादशाह बाबर ने कोई धन नहीं दिया, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस मुद्दे को जानबूझकर उठाया गया ताकि देश को बांटा जा सके।


मुर्शिदाबाद में नींव रखने और हैदराबाद में स्मारक के ऐलान के बाद, सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में बहस छिड़ गई है। एक पक्ष इसे धार्मिक भावनाओं का सम्मान मानता है, जबकि दूसरा पक्ष इसे पुराने जख्मों को कुरेदने की कोशिश कह रहा है।