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अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर: अमेरिकी कंपनियों का चीन से दूरी बनाने का नया ट्रेंड

अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव ने अमेरिकी कंपनियों को चीन से दूरी बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। हाल के सर्वेक्षणों के अनुसार, कई कंपनियाँ अब चीन में नए निवेश से बच रही हैं और अपने ऑपरेशन को अन्य देशों में स्थानांतरित करने की योजना बना रही हैं। 'चाइना प्लस वन' नीति के तहत, कंपनियाँ भारत और वियतनाम जैसे देशों में विस्तार कर रही हैं। इसके अलावा, चीन द्वारा टेक्नोलॉजी और दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर लगाई गई सीमाएं भी चिंता का विषय बनी हुई हैं। जानें इस व्यापारिक स्थिति का व्यापक प्रभाव।
 

अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव

अमेरिका और चीन के बीच चल रही व्यापारिक लड़ाई ने वैश्विक व्यापार में भारी उथल-पुथल पैदा कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू की गई इस आर्थिक खींचतान का प्रभाव अब अमेरिकी कंपनियों पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। अमेरिका और चीन, जो दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियां मानी जाती हैं, के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि कई अमेरिकी कंपनियों ने चीन में अपने निवेश को कम करने या वहां से अपने ऑपरेशन को समेटने का निर्णय लिया है।


चीन से किनारा कर रहीं अमेरिकी कंपनियां

हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि लगभग 52% अमेरिकी कंपनियों ने स्पष्ट किया है कि वे भविष्य में चीन में कोई नया निवेश नहीं करेंगी। इसके अलावा, इनमें से 27% कंपनियों ने पहले ही अपने कारोबार का एक हिस्सा चीन से बाहर स्थानांतरित कर लिया है या ऐसा करने की योजना बना रही हैं। यह प्रवृत्ति 2016 के बाद से सबसे अधिक देखी गई है, और पिछले चार वर्षों में इस सोच में तीन गुना वृद्धि हुई है।


वैश्विक सप्लाई चेन पर दबाव

चीन को लंबे समय तक 'विश्व की फैक्ट्री' माना जाता रहा है, जहां अमेरिकी कंपनियों ने सस्ते उत्पादन के जरिए भारी मुनाफा कमाया। लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक व्यापार का परिदृश्य तेजी से बदल गया है। अब अमेरिकी कंपनियां 'चाइना प्लस वन' नीति अपना रही हैं, जिसके तहत वे चीन के साथ-साथ भारत और वियतनाम जैसे अन्य देशों में भी अपने उद्योगों का विस्तार कर रही हैं। इसके अलावा, चीन द्वारा टेक्नोलॉजी और दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर लगाई गई सीमाएं भी चिंता का विषय बनी हुई हैं। चीन इन संसाधनों का रणनीतिक उपयोग कर रहा है, जिससे वैश्विक सप्लाई चेन पर दबाव बना हुआ है। यही कारण है कि अमेरिका की कई कंपनियां अब अपने व्यापारिक भविष्य के लिए नए विकल्प तलाश रही हैं।