असम मंत्री अशोक सिंघल की गोभी पोस्ट पर विवाद, 1989 के भागलपुर दंगों की याद दिलाई
सोशल मीडिया पर बवाल
बिहार में एनडीए की शानदार जीत के बाद, असम के मंत्री अशोक सिंघल की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने गोभी के खेत की एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, 'बिहार अप्रूव्स गोभी फार्मिंग।'
विवाद का कारण
यह पोस्ट तुरंत ही लोगों को 1989 के भागलपुर दंगों के दौरान हुए 'लौगांय नरसंहार' की याद दिला गई, जिसमें बड़ी संख्या में मुसलमानों की हत्या कर उनके शवों को गोभी और पत्तागोभी के पौधों के नीचे दफनाया गया था। इस पर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं।
असंवेदनशीलता पर उठे सवाल
असम मंत्री का गोभी खेत वाला पोस्ट लोगों को चौंका गया। कई यूजर्स ने कहा कि यह तस्वीर लौगांय नरसंहार की ओर इशारा करती है, जिसमें 100 से अधिक मुसलमानों की हत्या कर उनके शव एक खेत में दफनाए गए थे। कुछ लोगों ने पूछा कि क्या यह किसी मंत्री का आधिकारिक अकाउंट है? कई ने इसे असंवेदनशील और चौंकाने वाला बताया।
इतिहास की याद दिलाने वाली तस्वीरें
यूजर्स ने टिप्पणी करते हुए बताया कि गोभी की तस्वीरें 1989 के भागलपुर दंगों के उस दर्दनाक अध्याय की याद दिलाती हैं, जिसमें 116 मुसलमानों के शव गोभी और पत्तागोभी के पौधों से ढककर छिपाए गए थे। लोगों ने लिखा कि ऐसा संदर्भ किसी मंत्री द्वारा देना न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि दुखद इतिहास का उपहास करने जैसा है।
लौगांय गांव की हिंसा
24 अक्टूबर 1989 को शुरू हुई हिंसा दो महीनों तक भागलपुर और आस-पास के 250 गांवों में फैली। इस दौरान 1,000 से अधिक लोगों की जान गई, जिनमें लगभग 900 मुसलमान थे। लौगांय गांव में 4,000 लोगों की भीड़ ने 116 मुसलमानों की हत्या कर उनके शव गोभी के पौधों के नीचे दफनाए। 25 दिन बाद ADM एके सिंह ने इस भयावह राज का खुलासा किया, जिससे देश स्तब्ध रह गया।
रामशिला जुलूस का प्रभाव
यह हिंसा राम जन्मभूमि आंदोलन के बढ़ते तनाव के बीच भड़की। रामशिला जुलूस के दौरान भड़काऊ नारों के बाद स्थिति बिगड़ गई। टाटरपुर में बम फेंके जाने और पुलिस फायरिंग के बाद हिंसा ने तेज रूप ले लिया। दुकानों में आगजनी, हमले और हत्या की घटनाएं बढ़ती चली गईं। कई इलाके पूरी तरह उजड़ गए और सैकड़ों परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पलायन करना पड़ा।
राजनीतिक संवेदनाएं और अधूरी उम्मीदें
दंगों के बाद कई जांच आयोग बने, जिनमें पुलिस लापरवाही और प्रशासनिक विफलता उजागर हुई। दशकों तक मुकदमे चलते रहे, कुछ दोषियों को सजा हुई, लेकिन अधिकांश पीड़ित परिवार आज भी मानते हैं कि न्याय पूरी तरह नहीं मिला। इस घटना की संवेदनशीलता आज भी राजनीति और समाज में एक गहरे घाव की तरह मौजूद है, जिसे छूने पर प्रतिक्रियाएं भड़क उठती हैं।