सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: महिला शुभा को मंगेतर की हत्या में क्षमादान की अनुमति
महिला अपराधियों के लिए सुधारात्मक दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने शुभा नामक एक महिला को उसके मंगेतर की हत्या के मामले में राज्यपाल से क्षमादान मांगने की अनुमति दी है। अदालत ने कहा कि जब महिलाएं सामाजिक दबावों के कारण अपराध करती हैं, विशेषकर जबरन विवाह के चलते, तो उनके प्रति सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। कोर्ट ने माना कि शुभा का अपराध उसकी इच्छा के खिलाफ शादी करने के दबाव से प्रभावित था, और इस मामले में व्यवस्थागत विफलताओं की भूमिका को भी स्वीकार किया गया है।
22 साल पुराना मामला
शुभा को 2003 में अपने मंगेतर की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था, जब वह केवल 20 वर्ष की कॉलेज की छात्रा थी। उसने अपने परिवार से बार-बार शादी न करने की इच्छा जताई थी, लेकिन सामाजिक दबाव ने उसे गलत रास्ते पर धकेल दिया। अदालत ने यह भी बताया कि अब समाज में लैंगिक उत्पीड़न के प्रति अधिक जागरूकता है, जो उस समय नहीं थी।
न्याय में करुणा
अदालत ने कहा कि केवल सजा देना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि ऐसे व्यक्तियों को समाज में पुनः शामिल करने का प्रयास होना चाहिए। विशेषकर तब, जब उनका अपराध सामाजिक दबावों का परिणाम हो। अदालत ने यह भी कहा कि जब कोई महिला अपने जीवन के निर्णय लेने में स्वतंत्र नहीं होती, तो वह अपराध की शिकार कम और पीड़िता अधिक बन जाती है।
संवैधानिक सिद्धांतों के तहत क्षमादान की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने शुभा और उसके तीन साथियों – अरुण वर्मा, वेंकटेश और दिनेश – को कर्नाटक के राज्यपाल से क्षमादान मांगने की अनुमति दी। अदालत ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 का हवाला देते हुए कहा कि यह प्रावधान सजा में राहत का अवसर देता है, विशेषकर तब जब सामाजिक और व्यक्तिगत स्थितियाँ जटिल हों।
अपराध उचित नहीं, पर संवेदना जरूरी
अदालत ने स्पष्ट किया कि वह शुभा के अपराध को सही नहीं ठहराती, क्योंकि इसमें एक निर्दोष युवक की जान चली गई। लेकिन यह भी माना कि शुभा उस समय निर्णय लेने में सक्षम नहीं थी। इसलिए उसे पूरी तरह दोषी नहीं माना जा सकता।
सजा में अस्थायी राहत
न्यायालय ने शुभा को क्षमादान के लिए आवेदन देने का अवसर देने हेतु उसकी सजा को आठ सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया है। यह फैसला एक उदाहरण बन गया है कि न्याय केवल दंड नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास का माध्यम भी होना चाहिए।