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दिल्ली हाईकोर्ट ने PM मोदी की डिग्री विवाद पर DU को दिया तीन हफ्तों का समय

दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री से जुड़े विवाद में दिल्ली विश्वविद्यालय को तीन हफ्तों का समय दिया है। यह मामला 2016 में केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश से संबंधित है, जिसमें मोदी की शैक्षणिक डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने DU को फटकार लगाते हुए अपील में हुई देरी पर स्पष्टीकरण मांगा है। अपीलकर्ताओं ने इस मुद्दे को जनहित से जोड़ा है, जबकि अदालत यह तय करेगी कि क्या यह जानकारी सार्वजनिक करना लोकतांत्रिक पारदर्शिता के लिए आवश्यक है। अगली सुनवाई जनवरी 2026 में होगी।
 

दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश


नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री से संबंधित पुराना विवाद एक बार फिर चर्चा में है। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) को निर्देश दिया है कि वह अपील में हुई देरी के संबंध में अपना जवाब तीन हफ्तों के भीतर प्रस्तुत करे। यह मामला केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के 2016 के उस निर्णय से जुड़ा है, जिसमें मोदी की डिग्री से संबंधित जानकारी को सार्वजनिक करने का आदेश दिया गया था।


कोर्ट की फटकार

कोर्ट ने DU को लगाई फटकार
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने सुनवाई के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि अपीलें काफी देर से दाखिल की गई हैं और अब विश्वविद्यालय को तीन हफ्तों में अपना ऑब्जेक्शन प्रस्तुत करना होगा। इसके बाद अपीलकर्ताओं को जवाब देने के लिए दो हफ्तों का समय दिया गया है। अगली सुनवाई की तारीख 16 जनवरी 2026 निर्धारित की गई है।


RTI और जनहित का मुद्दा

RTI की धारा 8 और 'जनहित' की दलील
अपीलकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट शादान फरासत ने दो महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे उठाए। पहला यह कि क्या सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम की धारा 8 के तहत प्रधानमंत्री की डिग्री जैसी जानकारी को गोपनीय रखा जा सकता है? दूसरा, क्या इस तरह की जानकारी को सार्वजनिक करना बड़े जनहित में आता है? इस पर कोर्ट ने कहा कि दोनों पहलुओं की कानूनी व्याख्या आवश्यक है और DU को अपने जवाब में इन बिंदुओं पर विस्तृत स्पष्टीकरण देना होगा।


सिंगल बेंच का पूर्व आदेश

सिंगल बेंच का पूर्व आदेश
गौरतलब है कि 25 अगस्त 2024 को जस्टिस सचिन दत्ता की एकल पीठ ने CIC के दिसंबर 2016 के आदेश को निरस्त कर दिया था। उस आदेश में DU को 1978 के सभी BA पास छात्रों का रिकॉर्ड दिखाने का निर्देश दिया गया था, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी शामिल था। जज दत्ता ने कहा था कि किसी भी छात्र की डिग्री या मार्कशीट उसकी व्यक्तिगत जानकारी होती है, जिसे RTI की धारा 8(1)(j) के तहत सुरक्षित रखा गया है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी तीसरे पक्ष को यह रिकॉर्ड दिखाना गोपनीयता का उल्लंघन होगा, जब तक कि यह किसी बड़े जनहित में न किया जा रहा हो।


अपीलकर्ताओं की भूमिका

अपीलकर्ताओं की भूमिका
इस मामले में आप नेता संजय सिंह, RTI कार्यकर्ता नीरज शर्मा और एडवोकेट मोहम्मद इरशाद अपीलकर्ता हैं। उन्होंने अदालत से मांग की है कि मोदी की डिग्री से संबंधित रिकॉर्ड को सार्वजनिक किया जाए, क्योंकि यह जनहित से जुड़ा मामला है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या CBSE इस केस का पक्षकार है, क्योंकि एक अन्य मामले में स्मृति ईरानी की 10वीं और 12वीं की मार्कशीट की जानकारी मांगी गई थी। अपीलकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि CBSE इस अपील का हिस्सा नहीं है।


अदालत की कार्यवाही

क्या कहती है अदालत की कार्यवाही?
इस पूरे विवाद में अदालत अब यह तय करेगी कि क्या प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता को सार्वजनिक करना लोकतांत्रिक पारदर्शिता के लिए आवश्यक है या फिर यह किसी की निजी गोपनीयता का उल्लंघन है। फिलहाल, अदालत ने DU से स्पष्टीकरण मांगते हुए मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में तय की है, जिससे यह मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक और कानूनी हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।