बिहार विधानसभा चुनाव 2025: NDA की जीत से राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव
बिहार में चुनावी नतीजों का असर
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना ने राज्य के राजनीतिक माहौल को काफी गर्म कर दिया है। जैसे-जैसे परिणाम सामने आ रहे हैं, राजनीतिक दलों की धड़कनें भी बढ़ती जा रही हैं.
पप्पू यादव की प्रतिक्रिया
इस बीच, निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने चुनाव परिणामों पर अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जनता के निर्णय को सभी को मानना चाहिए, भले ही वह कड़वा लगे। उनका मानना है कि ये नतीजे बिहार के लिए दुर्भाग्यपूर्ण हैं, लेकिन लोकतंत्र में जनता का निर्णय सर्वोपरि होता है.
NDA की जीत पर पप्पू यादव का दुख
पप्पू यादव ने मीडिया से बातचीत में कहा कि वह जनता के फैसले का स्वागत करते हैं, लेकिन यह बिहार के लिए दुखद है.
NDA की बहुमत की ओर बढ़ती जीत
इस बीच, चुनाव परिणामों में NDA का प्रदर्शन लगातार बेहतर होता गया, और गठबंधन 243 में से 200 से अधिक सीटों पर आगे दिखने लगा। विधानसभा में बहुमत के लिए 121 सीटों की आवश्यकता होती है, लेकिन NDA इस आंकड़े को पीछे छोड़ते हुए बड़ी जीत की ओर बढ़ता नजर आया.
चुनावी नतीजों में बीजेपी का दबदबा
जदयू की 'बड़े भाई' वाली भूमिका भी कमजोर हुई, और गठबंधन के भीतर बीजेपी का दबदबा स्पष्ट रूप से दिखने लगा। सुबह 8 बजे पोस्टल बैलेट की गिनती शुरू होते ही NDA ने बढ़त बनानी शुरू कर दी। शाम तक यह बढ़त विशाल रूप में बदल गई, और बीजेपी-जदयू गठबंधन के कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल बन गया। पूरे राज्य में ढोल-नगाड़ों और मिठाइयों के साथ जीत का उत्सव मनाया जाने लगा.
महागठबंधन को बड़ा झटका
दूसरी ओर, महागठबंधन के लिए ये नतीजे एक बड़े झटके के समान रहे। पिछले चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने वाली आरजेडी इस बार 50 सीटों तक भी नहीं पहुंचती दिख रही थी। कांग्रेस भी कमजोर पड़ती नजर आई और पांच सीटों पर बढ़त बनाना भी उसके लिए चुनौती बन गया.
मुकेश सहनी का प्रदर्शन
महागठबंधन में शामिल वीआईपी पार्टी का प्रदर्शन सबसे खराब रहा और वह एक भी सीट नहीं जीत सकी। मुकेश सहनी की पार्टी, जिसे 'सन ऑफ मल्लाह' कहा जाता है, इस चुनाव में पूरी तरह असफल साबित हुई.
बिहार की राजनीति में बदलाव
कुल मिलाकर, 2025 के ये चुनावी नतीजे बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव लाने की संभावना रखते हैं। NDA की भारी जीत ने राज्य की सत्ता पर उनकी पकड़ को मजबूत कर दिया है, जबकि महागठबंधन को अपनी रणनीति पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता महसूस हो रही है.