×

बिहार विधानसभा चुनाव: भाजपा ने बनाई सबसे बड़ी पार्टी, नीतीश की स्थिति भी मजबूत

बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बना दिया है, जबकि नीतीश कुमार की स्थिति भी मजबूत बनी हुई है। भाजपा ने 101 सीटों में से 91 पर जीत हासिल की है, जिससे वह पहली बार बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। जेडीयू ने भी अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन वह भाजपा से पीछे रह गई। इस चुनाव ने राजनीतिक समीकरणों को बदल दिया है और सत्ता की संभावित दिशा को अनिश्चित बना दिया है। क्या नीतीश कुमार एक वैकल्पिक सरकार बना सकते हैं? जानें पूरी कहानी।
 

बिहार चुनाव परिणामों ने एग्ज़िट पोल्स को किया खारिज


बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने सभी एग्ज़िट पोल्स को गलत साबित कर दिया है। चुनाव से पहले किए गए 11 एग्ज़िट पोल्स में से केवल पोल डायरी ने एनडीए को 184 से 206 सीटें मिलने की संभावना जताई थी। अब जब एनडीए की सीटें 200 के करीब पहुंच गई हैं, तो इस एग्ज़िट पोल की चर्चा फिर से तेज हो गई है।


भाजपा का शानदार प्रदर्शन

इस बार भाजपा ने 101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और उनमें से 91 पर जीत हासिल की। इस नतीजे के साथ भाजपा पहली बार बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। 2010 में भाजपा ने 91 सीटें जीती थीं, लेकिन उस समय जेडीयू ने अधिक सीटें जीतकर पहले स्थान पर रही थी। इस बार राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं।


जेडीयू का प्रदर्शन और भाजपा की संभावनाएं

जेडीयू ने भी अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन वह 79 सीटों के साथ भाजपा से 12 सीट पीछे रह गई। इस स्थिति में भाजपा के पास सत्ता की ओर कई रास्ते खुलते दिखाई दे रहे हैं, बिना जेडीयू पर निर्भर हुए। भाजपा चिराग पासवान की लोजपा-आर, जीतन राम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकमोर्चा के साथ मिलकर बहुमत तक पहुंच सकती है।


बहुमत के लिए आवश्यक सीटें

विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटों की आवश्यकता है। भाजपा के 91 सीटों में चिराग पासवान के 21 जोड़ने पर 112 का आंकड़ा बनता है। HAM की 5 और RLM की 4 सीटें जोड़ने पर यह संख्या 121 हो जाएगी। इसके अलावा, बसपा का एक प्रत्याशी भी समर्थन में है, जिससे बहुमत का आंकड़ा पूरा हो सकता है।


नीतीश कुमार का प्रभाव

भाजपा सदन में कुछ विधायकों की अनुपस्थिति के सहारे भी बहुमत का आंकड़ा हासिल कर सकती है। हालांकि, यह एक संभावित विकल्प है, जिसे भाजपा शायद अपनाना नहीं चाहेगी। नीतीश कुमार अब भी बिहार की राजनीति में एक मजबूत चेहरा हैं। यदि वे चाहें, तो जेडीयू को केंद्र में रखकर वैकल्पिक सरकार बना सकते हैं।


राजनीतिक तस्वीर में बदलाव

हालांकि, यह राह आसान नहीं होगी, क्योंकि उन्हें उन दलों को साथ जोड़ना पड़ेगा जिनकी राजनीतिक विचारधारा उनसे मेल नहीं खाती, जैसे असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM। इस प्रकार, बिहार के चुनाव परिणामों ने राजनीतिक परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है। परिणामों ने न केवल समीकरण बदले हैं, बल्कि सत्ता की संभावित दिशा को भी अनिश्चित बना दिया है।