बिहार विधानसभा चुनाव में तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच बढ़ती राजनीतिक खींचतान
बिहार में चुनावी माहौल गरमाया
पटना: जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। एनडीए और महागठबंधन के नेता लगातार रैलियों में जुटे हुए हैं। इस बीच, आरजेडी के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे, तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव, के बीच की बयानबाजी भी चर्चा का विषय बनी हुई है.
तेज प्रताप का सख्त संदेश छोटे भाई के लिए
तेज प्रताप यादव, जो जनशक्ति जनता दल के नेता हैं, ने शनिवार को स्पष्ट किया कि यदि उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव महुआ विधानसभा क्षेत्र में उनके खिलाफ प्रचार करने आए, तो वह भी राघोपुर जाकर उनके खिलाफ प्रचार करेंगे.
पटना लौटते समय मीडिया से बातचीत में तेज प्रताप ने कहा कि अगर तेजस्वी महुआ जाएंगे, तो मैं भी राघोपुर जाऊंगा। उन्होंने बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य में अपराध की स्थिति लगातार बिगड़ रही है और चुनाव के बाद बदलाव निश्चित है.
तेज प्रताप की मुखरता तेजस्वी के खिलाफ
यह पहली बार नहीं है जब तेज प्रताप ने तेजस्वी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरने का इरादा जताया है। एक दिन पहले, उन्होंने कहा था कि यदि तेजस्वी महुआ में प्रचार करेंगे, तो वह भी राघोपुर जाकर जवाब देंगे। इसके साथ ही, उन्होंने मोकामा में हाल ही में हुई हत्या की घटना पर चिंता जताते हुए कहा कि बिहार में कानून व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है और सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए.
तेज प्रताप का चुनावी मैदान में नया कदम
महुआ विधानसभा सीट इस बार दोनों भाइयों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का केंद्र बन गई है। तेज प्रताप यादव यहां से जनशक्ति जनता दल (जेजेपी) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने 2015 में इसी सीट से आरजेडी के टिकट पर विधायक बने थे, लेकिन इस बार अपनी नई पार्टी से चुनावी मैदान में उतरे हैं.
वहीं, तेजस्वी यादव राघोपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उन्होंने महुआ से मौजूदा विधायक मुकेश रोशन को उम्मीदवार बनाया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों भाइयों के बीच यह तनाव न केवल पारिवारिक रिश्तों की परीक्षा ले रहा है, बल्कि बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ भी ला रहा है.
भाई बनाम भाई की जंग का परिणाम क्या होगा?
राजनीतिक पंडितों के अनुसार, लालू परिवार की यह आंतरिक खींचतान महागठबंधन के लिए एक सिरदर्द बन सकती है, जबकि एनडीए इसे चुनावी मुद्दा बनाकर भुनाने की कोशिश कर सकता है। फिलहाल, बिहार की जनता की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि महुआ और राघोपुर में इस भाई बनाम भाई की जंग का अंत किस तरह होता है.