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क्या 2025 में बिहार की राजनीति में फिर से कायम रहेगा ऐतिहासिक ट्रेंड?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना में छह महत्वपूर्ण सीटों का ऐतिहासिक ट्रेंड चर्चा का विषय बना हुआ है। इन सीटों के परिणाम हमेशा सरकार की दिशा तय करते हैं। क्या इस बार भी वही ट्रेंड कायम रहेगा? जानें केवटी, सहरसा, सकरा, मुंगेर, पिपरा और बरबीघा की सीटों के बारे में और जानें कि ये चुनावी नतीजे बिहार की राजनीति को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।
 

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना


पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की मतगणना चल रही है। राज्य की नजर उन महत्वपूर्ण सीटों पर है, जिनका पिछले कई दशकों से एक विशेष राजनीतिक इतिहास रहा है। ये छह सीटें, जिन्हें सरकार बनाने वाली सीटें कहा जाता है, 1977 से अब तक हर चुनाव में जिस गठबंधन ने जीत हासिल की, वही राज्य में सरकार बनाने में सफल रहा। इन सीटों में केवटी, सहरसा, सकरा, मुंगेर, पिपरा और बरबीघा शामिल हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस बार भी यह ऐतिहासिक ट्रेंड जारी रहेगा?


केवटी विधानसभा: 100% रिकॉर्ड वाली सीट

दरभंगा जिले की केवटी विधानसभा सीट का इतिहास बेहद दिलचस्प है। 1977 से अब तक इस सीट पर जो भी उम्मीदवार जीता, राज्य की सरकार उसी दल की बनी। 2020 के चुनाव में यहां से बीजेपी के मुरारी मोहन झा विजयी रहे थे और राज्य में जेडीयू–बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी थी। 2025 में भी यह सीट खास निगरानी में है क्योंकि इसका परिणाम एक बार फिर सरकार की दिशा तय कर सकता है।


सहरसा विधानसभा: सत्ता की डोर से जुड़ी सीट

पूर्वी बिहार की सहरसा सीट का रिकॉर्ड भी लगभग ऐसा ही रहा है। यहां जीत हासिल करने वाला उम्मीदवार अक्सर सत्तारूढ़ दल का विधायक बनता है। 2020 में इस सीट पर बीजेपी के आलोक रंजन झा विजयी हुए थे। इस बार उनके सामने महागठबंधन समर्थित आईआईपी के इंद्रजीत गुप्ता चुनौती दे रहे हैं। मतदाता किसे चुनते हैं, इससे सरकार का रुझान भी झलक सकता है।


सकरा विधानसभा: सिर्फ एक बार टूटा था पैटर्न

मुजफ्फरपुर जिले की सकरा सीट भी सत्ता की दिशा बताने वाली सीट मानी जाती है। 1977 से अब तक सिर्फ साल 1985 में यह ट्रेंड बदला था, जब लोकदल के शिवनंदन पासवान जीते थे, जबकि सरकार कांग्रेस की बनी थी। 2020 में इस सीट पर जेडीयू ने जीत दर्ज की थी। 2025 के नतीजे यह साफ करेंगे कि सकरा फिर उसी ऐतिहासिक पैटर्न पर चलता है या नहीं।


मुंगेर विधानसभा: सत्ता का पैमाना

मुंगेर की सीट भी सरकारों के बदलाव के साथ तालमेल बैठाती रही है। सिर्फ 1985 में यहां लोकदल की जीत और राज्य में कांग्रेस की सरकार, यह एकमात्र अपवाद रहा। 2020 में यहां बीजेपी के प्रणय कुमार यादव ने जीत दर्ज की थी। इस बार के नतीजों का इंतजार पूरे राजनीतिक समीकरण को नजर में रखते हुए हो रहा है।


पिपरा विधानसभा: लगभग स्थिर ट्रेंड

पूर्वी चंपारण की पिपरा सीट पर भी आमतौर पर सत्तारूढ़ दल जीतता आया है। हालांकि 2015 इसका अपवाद रहा, जब बीजेपी के श्यामबाबू प्रसाद यादव जीत गए थे, लेकिन सरकार महागठबंधन ने बनाई थी। बाद में नीतीश कुमार के NDA में लौटने से यह समीकरण भी बदल गया था। 2025 में यहां से फिर यादव मैदान में हैं और उनकी टक्कर सीपीएम के राजमंगल प्रसाद से है।


बरबीघा विधानसभा: सत्ता की राह दिखाने वाली सीट

बरबीघा विधानसभा सीट भी वही ऐतिहासिक पैटर्न दर्शाती है। 1977 में जनता पार्टी की जीत और फिर 2000 तक कांग्रेस का दबदबा दिखाता है कि यह सीट सत्ता परिवर्तन के संकेत देने में अग्रणी रही है। 2020 में यह सीट जेडीयू के पास गई थी, और सत्ता भी NDA गठबंधन की बनी थी।


क्या 2025 में फिर चलेगा यही पैटर्न?

इन छह सीटों का इतिहास बताता है कि बिहार की राजनीति में ये क्षेत्र बेहद निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अब जबकि 2025 के नतीजे सामने आने वाले हैं, पूरे राज्य की नज़र इसी बात पर है कि क्या ये सीटें एक बार फिर सरकार की दिशा तय करेंगी या दशकों पुराना यह राजनीतिक ट्रेंड इस बार टूट जाएगा। बिहार की अंतिम तस्वीर क्या होगी? यह मतगणना पूरी होने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा, लेकिन इतना तय है कि इन छह सीटों के परिणाम राजनीतिक गणित को बड़े स्तर पर प्रभावित करेंगे।