बांसवाड़ा में सोने और अन्य धातुओं का बड़ा भंडार: क्या है इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव?
बांसवाड़ा में वैज्ञानिकों की नई खोज
बांसवाड़ा: राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण खोज की है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के नवीनतम अध्ययन में यहां सोना, तांबा, कोबाल्ट और निकल जैसे कीमती धातुओं के विशाल भंडार का पता चला है। जानकारी के अनुसार, बांसवाड़ा के कांकरिया, डूंगरियापाड़ा, देलवाड़ा रावना और देलवाड़ा लोकिया गांवों के आसपास लगभग तीन वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में ये धातुएं मौजूद हैं।
उत्खनन की तैयारी में सरकार
GSI ने इस क्षेत्र में ड्रिलिंग और सैंपलिंग का कार्य शुरू करने की योजना बनाई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अनुमान सही साबित होता है, तो यह खोज देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर बन सकती है। केंद्र सरकार ने इस खोज के संदर्भ में सक्रियता दिखाई है और 3 नवंबर से गोल्ड माइनिंग सर्वे के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। जो कंपनी सबसे ऊंची बोली लगाएगी, उसे इस क्षेत्र में खोज और उत्खनन का लाइसेंस दिया जाएगा।
पिछले संकेतों का महत्व
यह पहली बार नहीं है जब बांसवाड़ा में सोने की संभावना की चर्चा हुई है। लगभग 5-6 वर्ष पहले GSI ने 12 स्थानों पर 600 से 700 फीट गहराई तक खुदाई की थी, जिसमें लगभग 1000 टन तांबा, 1.20 टन सोना, और थोड़ी मात्रा में कोबाल्ट और निकल मिलने की पुष्टि हुई थी। नए सर्वे में इन धातुओं की मात्रा अधिक बताई जा रही है। यदि ड्रिलिंग सफल होती है, तो अगले 2-3 वर्षों में उत्पादन शुरू होने की संभावना है।
घाटोल में भी खनिज भंडार
बांसवाड़ा से कुछ दूरी पर घाटोल के भुखिया-जगपुरा क्षेत्र में भी भारत का सबसे बड़ा सोने का भंडार (11.5 करोड़ टन) खोजा गया था। यहां लगभग 14 हजार टन कोबाल्ट और 11 हजार टन निकल भी मिला था। इस क्षेत्र में खनन का कार्य रतलाम की एक कंपनी को सौंपा गया है। इन खोजों के बाद राजस्थान अब भारत के खनिज संपन्न राज्यों की सूची में तेजी से ऊपर बढ़ रहा है।
भूगर्भीय संरचना का योगदान
भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि अरावली पर्वत श्रृंखला के निकटता के कारण बांसवाड़ा का भूगर्भ लगभग 5000 साल पुराना है। समय के साथ हुए भूगर्भीय परिवर्तनों ने खनिजों को सतह के करीब ला दिया है। यदि यह सच साबित हुआ, तो यह क्षेत्र राजस्थान का आर्थिक केंद्र बन सकता है।
आदिवासी समुदाय की चिंताएं
हालांकि इस खोज ने वैज्ञानिकों और निवेशकों में उत्साह पैदा किया है, वहीं स्थानीय आदिवासी समुदाय में चिंता बढ़ गई है। जिस क्षेत्र में खनन की तैयारी चल रही है, वहां लगभग 90% आबादी आदिवासी है। माही बांध और परमाणु संयंत्र जैसी परियोजनाओं के बाद अब उन्हें डर है कि कहीं इस बार सोने की खान के कारण उन्हें अपने घरों से विस्थापित न होना पड़े।