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भारतीय खेलों में मिलावट और धोखाधड़ी का संकट

भारतीय खेलों में मिलावट और धोखाधड़ी की समस्या गहराती जा रही है, जिससे खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इस लेख में हम देखेंगे कि कैसे राजनीति और मिलावट ने खेलों को प्रभावित किया है, और क्यों उम्र की धोखाधड़ी एक गंभीर मुद्दा बन गई है। क्या हम इस स्थिति को बदलने के लिए तैयार हैं? जानें इस लेख में।
 

खेलों में मिलावट का बढ़ता संकट

हाल के वर्षों में देश में खाद्य पदार्थों, जैसे अनाज, दूध, घी, और तेल में मिलावट के मामले बढ़ते जा रहे हैं। जांच से यह स्पष्ट हुआ है कि देश भ्रष्टाचार के गहरे समुद्र में डूबा हुआ है। हर क्षेत्र में मिलावट हो रही है, जिससे आम नागरिकों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है और उनके नैतिक मूल्यों पर भी असर पड़ रहा है। राजनीति में गंदगी का समावेश पहले ही हो चुका था, और अब राजनेताओं पर संदेह की नजरें डाली जा रही हैं।


खेल पत्रकार की भूमिका

एक खेल पत्रकार को इस विषय से भटकने की आवश्यकता नहीं है। उनका कार्य खेलों की खबरें एकत्रित करना और पाठकों तक पहुंचाना है। लेकिन गंदगी भरी राजनीति और मिलावट ने खेलों को भी प्रभावित किया है, जिसका असर खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर भी देखा जा सकता है। यह स्थिति तब है जब कई खिलाड़ी उम्र के झूठे आधार पर मैदान में उतर रहे हैं।


चुनाव आयोग और पहचान पत्रों का मुद्दा

देश में चुनाव आयोग की गतिविधियों और राजनीतिक दलों के बीच चल रहे संघर्ष पर भी एक नजर डालना आवश्यक है। आम मतदाता के वोटर कार्ड, पहचान पत्र और आधार कार्ड पर सवाल उठने लगे हैं। यदि ये पहचान पत्र सही नहीं हैं, तो भारतीय खेलों में धोखाधड़ी की बातें समझ में आती हैं।


खिलाड़ियों की उम्र की धोखाधड़ी

सरकारी सहायता और सुविधाओं के बावजूद भारतीय खेलों की स्थिति लगातार खराब हो रही है, क्योंकि अधिकांश खिलाड़ी उम्र की धोखाधड़ी का शिकार हैं। हमारे पहलवान, मुक्केबाज, और अन्य खिलाड़ी छोटे आयुवर्ग में तो रिकॉर्ड बना रहे हैं, लेकिन जब ओपन वर्ग में आते हैं, तो उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह इसलिए है क्योंकि बड़े उम्र के खिलाड़ी सब जूनियर और जूनियर वर्ग में खेल रहे हैं, और फर्जी उम्र प्रमाण पत्र का सहारा ले रहे हैं।


भारतीय खेलों की स्थिति

भारतीय खेलों की स्थिति निरंतर बिगड़ती जा रही है, और हमारे खिलाड़ी अपयश का सामना कर रहे हैं। आम भारतीय का सिर शर्म से झुक रहा है। भले ही हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में ओलंपिक आयोजन का दावा कर रहे हों, लेकिन सबसे पहले हमें अपने गिरेबान में झांकने की आवश्यकता है। आखिरकार, हम कब तक झूठ और धोखाधड़ी के आधार पर अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीटते रहेंगे?