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मार्स पर काली धारियों का रहस्य: वैज्ञानिकों ने किया खुलासा

हाल ही में एक अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि मार्स की काली धारियों में तरल पानी का कोई प्रमाण नहीं है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये धारियां सूखी धूल और भू-स्खलन के कारण बनती हैं। अध्ययन से यह भी पता चला है कि इन धारियों का प्रभाव वैश्विक धूल तूफान के समान हो सकता है। हालांकि तरल पानी की अनुपस्थिति जीवन की संभावनाओं को समाप्त नहीं करती, लेकिन यह सूखे वातावरण की ओर इशारा करती है। जानें इस अध्ययन के परिणाम और भविष्य के मिशनों पर इसके प्रभाव।
 

मार्स की काली धारियों का रहस्य


मार्स की ढलानों पर देखी जाने वाली रहस्यमयी काली धारियों के बारे में वैज्ञानिकों के बीच लंबे समय से चर्चा चल रही थी कि क्या ये नमकीन पानी के प्रवाह का संकेत हैं या केवल सूखी धूल की गतिविधि का परिणाम। यूनिवर्सिटी ऑफ बर्न द्वारा किए गए नए एआई-आधारित अध्ययन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इन धारियों में तरल पानी का कोई प्रमाण नहीं है। नासा और ईसा के मिशनों के डेटा के विश्लेषण से पता चला है कि ये धारियां मुख्य रूप से हवा, धूल और सूखे भू-स्खलन के कारण बनती हैं।


प्राकृतिक सूखी प्रक्रिया का परिणाम

शोध ने यह पुष्टि की है कि इन धारियों के निर्माण के लिए तरल पानी की आवश्यकता नहीं होती। सूखी धूल और महीन रेत के भू-स्खलन, जो ढलानों से नीचे खिसकते हैं, इसके मुख्य कारण हैं। हवा के झोंके, धूल की परतें और मौसमी परिवर्तन इन अंधेरी रेखाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यह घटना पूरी तरह से सूखी प्रक्रियाओं पर निर्भर है।


हालांकि तरल पानी नहीं है, ये काली धारियां हर साल इतनी धूल उठाती हैं कि उनका प्रभाव वैश्विक धूल तूफान के समान हो सकता है। इससे वैज्ञानिकों को मंगल की सतह, वातावरण और जल-विक्षेपण के इतिहास को समझने में नई जानकारी मिली है। यह निष्कर्ष इस सवाल पर भी प्रकाश डालता है कि कब और कैसे मंगल ने अपना पानी खोया।


क्या ग्रह पर जीवन की संभावनाएं खत्म?

तरल पानी की अनुपस्थिति का मतलब यह नहीं है कि ग्रह पर जीवन की संभावनाएं पूरी तरह समाप्त हो गई हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि वर्तमान सतह गतिविधियां सूखे वातावरण की ओर इशारा करती हैं। ऐसे निष्कर्ष भविष्य के मिशनों—ऑर्बिटर और रोवर—की रणनीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं।


वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल की सतह में हो रहे परिवर्तनों की निरंतर निगरानी आवश्यक है। ऑर्बिटर द्वारा प्राप्त विस्तृत चित्र यह समझने में मदद करेंगे कि ग्रह का जलवायु इतिहास कैसा रहा है और भविष्य के मानव मिशनों के लिए कौन-सी जगहें उपयुक्त होंगी।