उत्पन्ना एकादशी: महत्व और व्रत के नियम
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
नई दिल्ली: मार्गशीर्ष माह की पहली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है, जो इस वर्ष 15 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि इसी दिन से एकादशी व्रतों की शुरुआत होती है। देवउठनी एकादशी के बाद आने वाली इस एकादशी पर भगवान विष्णु और एकादशी देवी की पूजा की जाती है।
व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
इस दिन व्रत, पूजा और सत्कर्म करने से सभी इच्छाएं पूरी होने की मान्यता है। हालांकि, शास्त्रों में कुछ कार्यों से बचने की सलाह दी गई है, क्योंकि ये व्रत का फल नष्ट कर सकते हैं और दुर्भाग्य ला सकते हैं।
क्या न करें?
किन चीजों का रखें खास ध्यान?
उत्पन्ना एकादशी को पवित्र तिथि माना गया है। इस दिन मन और वचन को पवित्र रखना आवश्यक है। झूठ बोलना या धोखा देना अशुभ माना जाता है, जिससे भगवान विष्णु की कृपा दूर हो सकती है।
भोजन में क्या न शामिल करें?
भोजन में इन चीजों को न करें शामिल
इस दिन सात्विक आहार का सेवन करना चाहिए। लहसुन, प्याज, मांस और शराब का सेवन वर्जित है, क्योंकि इससे व्रत की पवित्रता भंग होती है।
दान का महत्व
दान पुण्य का क्या महत्व?
एकादशी व्रत में मन को शांत रखना और गुस्से से दूर रहना जरूरी है। क्रोध करने से व्रत का पुण्य नष्ट हो जाता है। इस दिन दान करना भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जरूरतमंदों की मदद करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
चावल का निषेध
चावल क्यों है निषिद्ध?
उत्पन्ना एकादशी के दिन चावल का सेवन निषिद्ध है। मान्यता है कि चावल खाने से व्रत का फल कम हो जाता है। इसलिए इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। द्वादशी के दिन सामान्य रूप से चावल खा सकते हैं।
उत्पन्ना एकादशी का पालन
उत्पन्ना एकादशी का पालन श्रद्धा और नियमों के साथ करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन भक्त पूजा, ध्यान और उपवास रखकर अपने मन और शरीर को पवित्र रखने का संकल्प लेते हैं।
