देवउठनी एकादशी: महत्व और पूजा विधि
देवउठनी एकादशी, जो हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, भगवान विष्णु के जागने का प्रतीक है। इस दिन विशेष पूजा विधियों का पालन किया जाता है, जिसमें पीले वस्त्र पहनना और भगवान को पीले फूल अर्पित करना शामिल है। जानें इस दिन की तिथि, पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में।
| Nov 2, 2025, 11:14 IST
देवउठनी एकादशी का महत्व
हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। भगवान विष्णु के जागने के साथ ही चातुर्मास का समापन होता है, जिससे विवाह, गृहप्रवेश और मुंडन जैसे मांगलिक कार्य फिर से आरंभ होते हैं। देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देव प्रबोधिनी एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन एकादशी तिथि दो दिन पड़ने के कारण व्रत की सही तिथि को लेकर कुछ भ्रम उत्पन्न हो सकता है।
देवउठनी एकादशी की तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 01 नवंबर 2025 को सुबह 09:12 बजे से प्रारंभ होगी और 02 नवंबर को शाम 07:23 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, गृहस्थ लोग 01 नवंबर को और वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी 02 नवंबर को देवउठनी एकादशी का व्रत करेंगे।
पूजन विधि
देवउठनी एकादशी के दिन प्रातः जल्दी स्नान करने के बाद पीले वस्त्र पहनें, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु को प्रिय है। भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। पूजा से पूर्व आचमन करें और भगवान विष्णु को पीले फूल, पीला चंदन, तुलसी दल और पुष्पमाला अर्पित करें। प्रसाद में पीली मिठाई, सिंघाड़ा, गन्ना, मौसमी फल और शुद्ध जल का भोग लगाएं। इसके बाद घी का दीपक जलाकर धूप प्रज्वलित करें और भगवान विष्णु का मंत्रोच्चार करें।
विशेष पूजा सामग्री
इस दिन विष्णु चालीसा, देवउठनी एकादशी व्रत कथा, श्रीहरि स्तुति और विष्णु मंत्रों का जाप करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करें।
