फिल्म 'आप जैसा कोई': पितृसत्ता पर सवाल उठाने वाली एक महत्वपूर्ण कहानी
फिल्म 'आप जैसा कोई' का परिचय
फिल्म 'आप जैसा कोई' की समीक्षा: मनोरंजन के क्षेत्र में कई बार फूहड़ता देखने को मिलती है, लेकिन कुछ फिल्में समाज के वास्तविक मुद्दों को उजागर करती हैं। ऐसी ही एक फिल्म है 'आप जैसा कोई', जो 11 जुलाई को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई। इसकी कहानी कुछ दर्शकों को सामान्य लग सकती है, क्योंकि हाल के वर्षों में महिलाओं के मुद्दों पर कई फिल्में बनी हैं। दर्शकों की राय इस फिल्म के प्रति भिन्न हो सकती है।
कहानी का केंद्र
फिल्म का मुख्य विषय
यह फिल्म दो मुख्य पात्रों और उनके परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती है। हालांकि, इन परिवारों में महिलाओं की स्थिति में बड़ा अंतर है। कहानी की शुरुआत होती है नायक श्रीरेणु त्रिपाठी (आर. माधवन) से, जो 30 साल की उम्र पार कर चुका है और अब तक किसी लड़की के साथ रिश्ते में नहीं रहा है।
पुरुष प्रधान परिवार की कहानी
पुरुष प्रधानता का चित्रण
नायक का परिवार अपने बेटे की शादी के लिए लड़की की तलाश कर रहा है। इस परिवार में पुरुषों का वर्चस्व है, जहां महिलाओं को पढ़ाई-लिखाई की अनुमति तो है, लेकिन उनका मुख्य ध्यान रसोई में खाना बनाने पर होता है।
महिलाओं की भूमिका पर सवाल
महिलाओं की अपेक्षाएँ
समाज में एक अच्छी महिला के लिए कई मानदंड निर्धारित किए गए हैं। उसे सुंदर, शिक्षित और कामकाजी होना चाहिए, लेकिन साथ ही अपनी सीमाओं का भी ध्यान रखना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि ये सीमाएँ क्या होनी चाहिए? एक सिंगल लड़का 'आप जैसा कोई' नामक ऐप पर अपनी पसंद की लड़कियों से बात करता है, जिनके लिए उसने अपनी सीमाएँ तय की हैं।
नायिका का किरदार
नायिका का चित्रण
फिल्म में नायिका का किरदार मधु बोस (सना शेख फातिमा) ने निभाया है। वह एक कोलकाता की लड़की है, जिसे खूबसूरत और आकर्षक माना जाता है। उसके रिश्ते की बात उसके मामा द्वारा श्री से तय की जाती है।
पुरुष प्रधानता की आलोचना
पुरुष प्रधानता का प्रभाव
मधु की खूबसूरती और शिक्षा के बावजूद उसकी शादी नहीं हो पाती। समाज की मानसिकता यह मानती है कि अगर शादी नहीं हुई, तो कोई कमी होगी। नायक, जो ऐप पर लड़कियों से बात कर रहा है, मधु के चरित्र पर संदेह करता है।
लड़कों की छूट और लड़कियों की सीमाएँ
लड़कों की छूट
समाज में लड़कों को जो भी करें, वह सही माना जाता है, जबकि लड़कियों को हर कदम पर जज किया जाता है। फिल्म में इस मुद्दे को खूबसूरती से उठाया गया है। जब नायक को पता चलता है कि वह जिस लड़की से बात कर रहा है, वह मधु है, तो वह उसे चरित्रहीन कहकर रिश्ता तोड़ देता है।
महिलाओं की स्वतंत्रता
महिलाओं की स्वतंत्रता का सवाल
भारतीय समाज में लड़कियों को पढ़ाई और नौकरी की अनुमति तो दी जाती है, लेकिन उनके अधिकारों को सीमित रखा जाता है। यह सवाल उठता है कि क्यों लड़कियों को भी वही स्वतंत्रता नहीं दी जाती जो लड़कों को मिलती है?
पिता की चिंताएँ
पिता की चिंताएँ
एक पिता को अपनी बेटी की पढ़ाई से ज्यादा चिंता इस बात की होती है कि वह खाना बनाना कब सीखेगी। यह दर्शाता है कि समाज में अभी भी पारंपरिक सोच हावी है।
महिलाओं की इच्छाएँ
महिलाओं की इच्छाएँ और उनकी पहचान
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे महिलाएँ अपनी इच्छाओं को दबा कर रखती हैं। 40 साल की उम्र पार करने के बाद भी महिलाओं की इच्छाएँ खत्म नहीं होतीं।
एक्सट्रामैरिटल अफेयर
एक्सट्रामैरिटल अफेयर का मुद्दा
फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि कैसे शहरी महिलाएँ अपने अधिकारों के लिए लड़ती हैं, जबकि ग्रामीण महिलाएँ अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने में असमर्थ होती हैं।
भावनात्मक दूरी
भावनात्मक दूरी का मुद्दा
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे महिलाएँ अपने पतियों के तानों का सामना करती हैं, जबकि उनकी भावनाएँ अनसुनी रह जाती हैं।
पुरुषों की समझदारी
पुरुषों की समझदारी की आवश्यकता
पुरुषों को यह समझना होगा कि उनकी पत्नी, प्रेमिका या बहन क्या चाहती हैं। उन्हें महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।
पढ़ी-लिखी लड़कियों की स्थिति
पढ़ी-लिखी लड़कियों की स्थिति
फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि पढ़ी-लिखी लड़कियों को समाज में कई बार नकारात्मक दृष्टिकोण का सामना करना पड़ता है।
समाज में बदलाव की आवश्यकता
समाज में बदलाव की आवश्यकता
महंगाई के बढ़ते प्रभाव के कारण महिलाओं को भी काम करने की आवश्यकता है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
महिलाओं की भूमिका
महिलाओं की भूमिका
आज की महिलाएँ अपने परिवारों के साथ-साथ अपने करियर को भी संभाल रही हैं। यह दर्शाता है कि समाज में बदलाव आ रहा है।
दहेज प्रथा का अंत
दहेज प्रथा का अंत
दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए समाज को जागरूक होना होगा। बेटियों की शिक्षा पर जोर देना आवश्यक है ताकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें।
समाज में समानता की आवश्यकता
समाज में समानता की आवश्यकता
महिलाओं को अपनी पसंद का जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए। समाज को इस दिशा में आगे बढ़ना होगा।