उत्पन्ना एकादशी: पूजा विधि और महत्व
उत्पन्ना एकादशी, जो भगवान कृष्ण को प्रिय है, का महत्व और पूजा विधि जानें। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। जानें कब मनाई जाएगी और इस दिन के शुभ संयोग। पूजा विधि और आवश्यक सामग्री की जानकारी भी प्राप्त करें।
| Nov 14, 2025, 13:08 IST
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
मार्गशीर्ष का महीना चल रहा है, जो भगवान कृष्ण के लिए विशेष रूप से प्रिय है। इस महीने में आने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विधिपूर्वक की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं, जिससे आरोग्य, संतान प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग खुलता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवी एकादशी की उत्पत्ति इसी तिथि पर हुई थी, इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि देवी एकादशी ने असुरों का नाश कर देवताओं की रक्षा की।
उत्पन्ना एकादशी कब मनाई जाएगी?
उत्पन्ना एकादशी का तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी 15 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन व्रत रखा जाएगा और अगले दिन इसका पारण किया जाएगा। एकादशी तिथि का आरंभ 15 नवंबर 2025 को मध्यरात्रि 12:49 बजे से होगा और यह 16 नवंबर 2025 को सुबह 2:37 बजे तक चलेगा। इस प्रकार, उत्पन्ना एकादशी का व्रत 15 नवंबर 2025, शनिवार को किया जाएगा, जबकि पारण 16 नवंबर 2025 को होगा।
उत्पन्ना एकादशी पर शुभ संयोग
शुभ संयोग
इस बार एकादशी के दिन कई शुभ संयोग बन रहे हैं:
- उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र
- विष्कुंभ योग
- अभिजीत मुहूर्त
- ये तीनों योग व्रत के फल को और भी शुभ बनाएंगे।
उत्पन्ना एकादशी पूजा विधि
पूजा विधि
- सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
- घर के मंदिर को साफ रखें।
- दीपक जलाएं और शांत वातावरण बनाएं।
- भगवान विष्णु को गंगाजल से अभिषेक करें।
- भगवान विष्णु को फूल और तुलसी दल अर्पित करें।
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।
- ध्यान रखें कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते, इसलिए भोग में तुलसी अवश्य डालें।
- पूरे दिन भगवान का नाम स्मरण करें।
उत्पन्ना एकादशी व्रत के लिए सामग्री
सामग्री सूची
- भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र
- फूल
- नारियल
- सुपारी
- फल
- लौंग
- धूप
- दीपक (घी का दीया)
- पंचामृत
- अक्षत
- तुलसी दल
- चंदन
- मिष्ठान (भोग के लिए)
