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श्रावण मास में कांवड़ यात्रा: शिवभक्तों की श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक

हर साल श्रावण मास में कांवड़ यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें शिवभक्त गंगा जल लेकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यात्रा करते हैं। यह यात्रा श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। 2025 में यह यात्रा 11 जुलाई से शुरू होकर 23 जुलाई को सावन शिवरात्रि पर अपने चरम पर पहुंचेगी। जानें इस यात्रा का महत्व और भक्तों की आस्था के बारे में।
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कांवड़ यात्रा का महत्व

हर साल जब श्रावण का महीना आता है, तो भारत के विभिन्न हिस्सों से शिवभक्त पवित्र गंगा जल लेने के लिए कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि श्रद्धा, अनुशासन और आत्म-समर्पण का प्रतीक है। वर्ष 2025 में यह आध्यात्मिक यात्रा 11 जुलाई से शुरू हो चुकी है और इसका मुख्य दिन 23 जुलाई को सावन शिवरात्रि होगा, जब लाखों भक्त शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाकर अपनी इच्छाएं व्यक्त करेंगे।


कांवड़ यात्रा का उद्देश्य भगवान शिव को प्रसन्न करना है। गंगा जल से अभिषेक करना, शिव को उनके प्रिय तत्व जल अर्पित करने की एक पवित्र परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस जल से शिवलिंग का अभिषेक करने से भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं और उन्हें आध्यात्मिक शांति तथा मोक्ष का मार्ग मिलता है।


कई भक्त विशेष संकल्प लेकर इस यात्रा पर जाते हैं और जब उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं, तो वे पुनः भगवान शिव को धन्यवाद अर्पित करने के लिए कांवड़ उठाते हैं। यह यात्रा उनके समर्पण और आभार का प्रतीक बन जाती है।


कांवड़ यात्रा की संख्या

जो श्रद्धालु किसी विशेष मन्नत के साथ पहली बार कांवड़ यात्रा करते हैं, वे अक्सर पुनः यात्रा पर निकलते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा पूरी करने की संख्या भक्त की आस्था पर निर्भर करती है। परंपरा में 2, 5, 7, 11 या 21 बार यात्रा करना शुभ माना जाता है। यह कोई बाध्यता नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत श्रद्धा और संकल्प का विषय है।