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कांवड़ यात्रा का इतिहास: किसने की शुरुआत?

कांवड़ यात्रा, जो सावन के महीने में होती है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा है। यह यात्रा भगवान शिव के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का एक तरीका है। इस लेख में हम जानेंगे कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत किसने की थी, जिसमें भगवान परशुराम, भगवान राम, श्रवण कुमार और रावण का उल्लेख है। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि भक्तों के लिए एक विशेष अनुभव भी है।
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कांवड़ यात्रा का इतिहास: किसने की शुरुआत?

कांवड़ यात्रा 2025: एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा

कांवड़ यात्रा 2025: सावन के महीने में आयोजित होने वाली कांवड़ यात्रा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह एक प्राचीन तीर्थयात्रा है, जिसमें शिव भक्त श्रद्धा और उत्साह के साथ भाग लेते हैं। भक्त भगवान शिव का जल अभिषेक करने के लिए कांवड़ यात्रा करते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा से इस यात्रा को करता है, उस पर भोलेनाथ की विशेष कृपा होती है और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत सबसे पहले किसने की थी?


कांवड़ यात्रा की शुरुआत का इतिहास

कौन था पहला कांवड़ यात्री?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की थी। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर बागपत के पुरा महादेव मंदिर में भगवान शिव का जलाभिषेक किया, जिससे भगवान शंकर उनसे अत्यंत प्रसन्न हुए।


भगवान राम का योगदान

कुछ मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत भगवान राम ने की थी। कहा जाता है कि श्री राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर में बाबा बैद्यनाथ धाम के शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।


श्रवण कुमार का योगदान

कुछ विद्वानों का मानना है कि त्रेता युग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। उन्होंने अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थयात्रा कराई और सावन के महीने में हरिद्वार में गंगा स्नान भी कराया।


रावण की कांवड़ यात्रा

कुछ पुरानी मान्यताओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने विष का पान किया था, तब रावण ने कांवड़ में जल भरकर 'पुरा महादेव' पहुंचकर शिवजी का जलाभिषेक किया। इस घटना के बाद कांवड़ यात्रा की परंपरा की शुरुआत हुई।