हरियाणा में स्कूलों में श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोकों का अध्ययन शुरू

हरियाणा सरकार का नया निर्णय
हरियाणा सरकार ने हाल ही में स्कूलों में श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोकों को पढ़ाने का निर्णय लिया है। यह कदम शिक्षा में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। इसके माध्यम से बच्चों को जीवन के गहन दार्शनिक प्रश्नों से अवगत कराने का प्रयास किया जाएगा। श्रीमद्भगवद् गीता, जो हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उपदेश दिया है।
श्रीमद्भगवद् गीता का महत्व
गीता में 18 अध्याय और लगभग 700 श्लोक हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझाते हैं। यह ग्रंथ कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और ध्यानयोग जैसे विभिन्न मार्गों के माध्यम से जीवन के उद्देश्य और कर्तव्यों को स्पष्ट करता है। गीता का संदेश सभी मानवता के लिए प्रेरणादायक है, और यह हमें सिखाता है कि जीवन में संतुलन, आत्म-नियंत्रण और निस्वार्थ कर्म की महत्ता को समझना आवश्यक है।
बच्चों के लिए गीता का अध्ययन क्यों आवश्यक है?
- स्कूलों में गीता के श्लोक पढ़ाने से बच्चों में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का विकास होगा, जिससे उन्हें कई लाभ मिलेंगे।
- गीता बच्चों को सत्य, अहिंसा और कर्तव्यनिष्ठा जैसे मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। इसके साथ ही ध्यान और ज्ञानयोग के सिद्धांत बच्चों को तनाव प्रबंधन और आत्म-नियंत्रण सिखाते हैं।
- कर्मयोग का सिद्धांत बच्चों को यह समझने में मदद करता है कि उन्हें परिणाम की चिंता किए बिना कर्म करना चाहिए, जिससे उनमें धैर्य और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- गीता का अध्ययन बच्चों को उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत से जोड़ता है, जिससे उनमें गर्व और आत्म-सम्मान की भावना विकसित होती है।
शिक्षाप्रद गीता के श्लोक
श्लोक: 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।'
अर्थ: गीता के अध्याय 2 के श्लोक 47 के अनुसार, तुम्हें केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
शिक्षा: यह श्लोक कर्मयोग का मूल सिद्धांत सिखाता है। हमें अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा से करना चाहिए, बिना यह सोचे कि इसका परिणाम क्या होगा।
श्लोक: 'यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।'
अर्थ: अध्याय 4 के श्लोक 7 के अनुसार, जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं (ईश्वर) स्वयं को प्रकट करता हूं।
शिक्षा: यह श्लोक बच्चों को यह विश्वास दिलाता है कि सत्य और धर्म की हमेशा रक्षा होती है।
श्लोक: 'सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि। यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।।'
अर्थ: अध्याय 4 के श्लोक 37 के अनुसार, जैसे प्रज्वलित अग्नि लकड़ियों को भस्म कर देती है, वैसे ही ज्ञान की अग्नि सभी कर्मों को भस्म कर देती है।
शिक्षा: यह श्लोक ज्ञानयोग की महत्ता बताता है।
श्लोक: 'योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।'
अर्थ: अध्याय 2 के श्लोक 48 में लिखा है कि हे धनंजय! योग में स्थिर होकर, आसक्ति त्यागकर और सफलता-असफलता में समान भाव रखकर कर्म कर।
शिक्षा: यह श्लोक बच्चों को मानसिक संतुलन और धैर्य सिखाता है।