नियमों से विचलन करना इस मंदिर का अपमान है: सभापति
नई दिल्ली, 28 नवंबर (हि.स.)। राज्य सभा में गुरुवार को अडाणी मामले पर नियम 267 के तहत चर्चा की मांग को लेकर हुए हंगामे के बीच सदन की कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी गई। सभा की शुरुआत में अवरोध के बीच सभापति जगदीप धनखड़ ने सदस्यों से अनुशासन और शिष्टाचार बनाए रखने की अपील की। उन्होंने सदस्यों से संसदीय प्रक्रिया के नियमों का पालन करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि यह सदन केवल बहस का मंच नहीं है – यहां से हमारी राष्ट्रीय भावना को गूंजना चाहिए। संसदीय अवरोध कोई समाधान नहीं है, यह एक रोग है। यह हमारी नींव को कमजोर करता है। यह संसद को अप्रासंगिकता की ओर ले जाता है। हमें अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी होगी। जब हम इस तरह के आचरण में संलग्न होते हैं, तो हम संवैधानिक व्यवस्था से भटक जाते हैं। हम अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं। यदि संसद लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य से भटकती है, तो हमें राष्ट्रवाद को पोषित करना और लोकतंत्र को आगे बढ़ाना चाहिए।
सदन में सदस्य जयराम रमेश के एक प्रश्न के उत्तर में सभापति ने कहा, यह एक अच्छा प्रश्न है, जो मेरे प्रिय मित्र जयराम रमेश द्वारा उठाया गया है। उन्होंने पूछा है कि आसन (चेयर) को कैसे प्रभावित कर सकते हैं? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, इसलिए मैं इसका उत्तर देना चाहता हूं। ऐतिहासिक रूप से हम आसन को केवल तभी प्रभावित कर सकते हैं, जब हम नियमों के उच्चतम मानकों का पालन करें। जैसा कि मैंने कल कहा था, आसन के निर्णय का सम्मान होना चाहिए, उसे चुनौती नहीं दी जानी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, नियम इतने व्यापक हैं कि वे हर सांसद को योगदान देने का अवसर प्रदान करते हैं। मुझे पिछले सत्र की ओर ध्यान दिलाने दें, जब हमने समय का आवंटन किया था लेकिन वक्ताओं की कमी के कारण हम उस समय का उपयोग नहीं कर सके। इसलिए नियमों के अनुसार अपनी चिंताओं को व्यक्त करने में कोई बाधा नहीं है।
नियमों से किसी भी प्रकार का विचलन इस मंदिर का अपमान करने के समान है।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी