न्यायपालिका में विविधता बनाए रखने की आवश्यकताः पी. विल्सन
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नई दिल्ली, 27 फ़रवरी (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स फोरम ने गुरुवार को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता विषय पर सेमिनार का आयोजन किया। इस सेमिनार का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में उनकी जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के उचित प्रतिनिधित्व पर चर्चा और विचार-विमर्श के लिए एक मंच प्रदान करना था। इंडियन सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ ऑडिटोरियम में आयोजित सेमिनार में सांसद पी विल्सन ने न्यायपालिका में विविधता बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
पी विल्सन ने कहा कि देश संविधान के 75वें वर्ष में कदम रख रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व में गिरावट देखी जा रही है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में विविधता की कमी है। न्यायिक विविधता निर्णय की गुणवत्ता के लिए बुनियादी आवश्यकता है। अधिक विविधता न्यायपालिका की आवश्यकता है, क्योंकि इसके बिना कम प्रतिनिधित्व वाले अधिकारों के उल्लंघन की आशंका बहुत बढ़ जाती है और अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव हो सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रवृत्ति से पता चलता है कि सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समूहों का प्रतिनिधित्व निराशाजनक बना हुआ है। महिला न्यायाधीशों की संख्या में बहुत गिरावट आई है। कुछ वर्गों का महत्वपूर्ण अति-प्रतिनिधित्व मौजूदा व्यवस्था की निष्पक्षता और विभिन्न सामाजिक समूहों से भर्ती करने में असमर्थता पर सवाल उठाता है।
उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में विविधता की कमी के इस संकट ने इस देश के लोगों के मन में बहुत भय और पीड़ा पैदा कर दी है, जिन्हें लगता है कि सर्वोच्च न्यायपालिका में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। जनता के बीच भरोसा कायम रखने के लिए न्यायपालिका में विविधता बनाए रखनी चाहिए। इस सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स फोरम के संयोजक बलराज सिंह मलिक, न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता डीआर केएस चौहान, दिनेश कुमार गोस्वामी और बीपी अशोक भी शामिल हुए।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी