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इतिहास की गहराइयों में झांकता छत्तीसगढ़ का बलरामपुर-रामानुजगंज जिला, प्राकृतिक सौंदर्य और आदिवासी संस्कृति का संगम

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इतिहास की गहराइयों में झांकता छत्तीसगढ़ का बलरामपुर-रामानुजगंज जिला, प्राकृतिक सौंदर्य और आदिवासी संस्कृति का संगम


बलरामपुर, 2 नवंबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के उत्तर में स्थित बलरामपुर-रामानुजगंज जिला अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है। यह जिला 17 जनवरी 2012 को पुराने सरगुजा जिले से अलग होकर अस्तित्व में आया था। उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में झारखंड और पश्चिम में मध्यप्रदेश से सटा यह जिला न केवल भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ की सीमाओं को जोड़ने वाला प्रमुख क्षेत्र भी है।

यहां का भूगोल मुख्य रूप से पहाड़ी और वनाच्छादित है। सतपुड़ा पर्वतमाला की शाखाएं इस क्षेत्र से होकर गुजरती हैं, जिससे जिले को ‘वनांचल’ कहा जाता है। यहां की प्रमुख नदियों में कन्हर और रिहंद शामिल हैं। बलरामपुर जिले का कुल क्षेत्रफल लगभग 6016 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें घने जंगल और उपजाऊ भूमि का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह अनुसूचित जनजाति बहुत जिला है। यहाँ मुख्यतः पहाड़ी कोरवा, गोण्ड, खैरवार, कांवरा और पंडो शामिल हैं।

आदिवासी संस्कृति की धरती

बलरामपुर-रामानुजगंज की पहचान इसकी समृद्ध आदिवासी संस्कृति से भी है। यहां पहाड़ी कोरवा, गोंड, खैरवार, पंडो और कांवर जैसी प्रमुख जनजातियां निवास करती हैं। जनगणना 2011 के अनुसार, जिले की करीब 63 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजातियों की है। इन समुदायों की अपनी विशिष्ट भाषा, नृत्य, लोकगीत और परंपराएं हैं। यहां का कर्मा नृत्य, छेरता पर्व और परंपरागत आदिवासी तीज-त्योहार स्थानीय जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।

स्थानीय निवासी चंद्रशेखर पोर्ते ने बताया, हमारे पुरखों ने इस जंगल और पहाड़ों में जीवन बिताया है। अब विकास की रफ्तार हमारे गांवों तक पहुंच रही है, लेकिन हमें अपनी संस्कृति को भी बचाए रखना है। यही हमारी असली पहचान है।

ऐतिहासिक और पर्यटन महत्व के स्थल

बलरामपुर-रामानुजगंज इतिहास और पर्यटन की दृष्टि से भी खासा समृद्ध है। यहां स्थित तातापानी का गर्म जलस्रोत पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि, इसका पानी कई रोगों के उपचार में कारगर है। हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर यहां मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु और पर्यटक शामिल होते हैं।

इसी तरह गौरलाटा, डिपदीह और श्यामनगर के निकट पहाड़ों में कई प्राचीन अवशेष मिलते हैं, जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिक विरासत को दर्शाते हैं। वहीं, कन्हर नदी का तट और आसपास का हरियाली भरा इलाका पिकनिक और पर्यटन के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है।

विकास की दिशा में आगे बढ़ता जिला

जिले के गठन के बाद प्रशासनिक ढांचा मजबूत हुआ है। नई सड़कों, स्वास्थ्य केंद्रों और स्कूलों के निर्माण ने गांवों तक विकास की किरण पहुंचाई है। रामानुजगंज को हाल ही में फिर से नगर पालिका का दर्जा मिला है, जिससे शहरी सुविधाओं के विस्तार की राह खुली है।

बलरामपुर के कलेक्टर कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया, जिले के दुर्गम इलाकों तक अब सड़क और बिजली पहुंच चुकी है। प्रधानमंत्री जनमान अभियान के तहत पहाड़ी कोरवा और पंडो समुदाय के परिवारों को पहली बार बिजली कनेक्शन मिला है।

चुनौतियों के बावजूद प्रगति की ओर कदम

वन और पहाड़ी इलाकों में बसे गांवों तक विकास पहुंचाना अब भी एक बड़ी चुनौती है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के बावजूद यहां के लोग अपनी मेहनत और आत्मनिर्भरता से आगे बढ़ रहे हैं।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता ममता सिंह का कहना है, बलरामपुर जिले के लोग भले ही सीमांत इलाकों में रहते हैं, लेकिन उनमें आगे बढ़ने की अदम्य इच्छाशक्ति है। अगर पर्यटन और हस्तशिल्प को प्रोत्साहन मिले, तो यह क्षेत्र पूरे छत्तीसगढ़ की पहचान बन सकता है।

संस्कृति और प्रकृति का जीवंत संगम

घने जंगल, पहाड़ी झरने, ऐतिहासिक स्थल और परंपरागत आदिवासी जीवनशैली ये सब मिलकर बलरामपुर-रामानुजगंज को अनोखी पहचान देते हैं। यहां की मिट्टी में इतिहास की खुशबू है और यहां के लोग उस विरासत को संजोए हुए हैं।

आज यह जिला विकास और परंपरा के संगम का प्रतीक बनता जा रहा है। आने वाले वर्षों में यदि यहां की प्राकृतिक सुंदरता को पर्यटन के रूप में विकसित किया गया और स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा मिला, तो बलरामपुर-रामानुजगंज न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश के मानचित्र पर विशेष स्थान प्राप्त कर सकता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय