कश्मीर की राजनीति में बिलाल गनी लोन का बड़ा बयान: हुर्रियत का अस्तित्व खत्म

हुर्रियत का प्रभाव समाप्त
पूर्व अलगाववादी नेता बिलाल गनी लोन ने कश्मीर की राजनीतिक स्थिति पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हुर्रियत का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है और यह संगठन अब कश्मीर की जनता से पूरी तरह कट चुका है।
हुर्रियत की विश्वसनीयता में कमी
लोन ने बताया कि पहले हुर्रियत पर जनता का विश्वास था, लेकिन अब वह विश्वास समाप्त हो चुका है। उन्होंने कहा, "आज अगर कोई हुर्रियत का नाम लेता है, तो यह संगठन कहीं दिखाई नहीं देता। यह न तो सक्रिय है और न ही इसका कोई प्रभाव है।"
अवसरों की कमी से विफलता
अपने एक साक्षात्कार में लोन ने स्वीकार किया कि हुर्रियत को कई बार अवसर मिले, लेकिन उचित कार्रवाई न होने के कारण वे सभी व्यर्थ हो गए। उन्होंने कहा, "हमने समय पर आवश्यक निर्णय नहीं लिए और उन अवसरों को खो दिया, जो कश्मीर के भविष्य को बदल सकते थे।"
पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल
बिलाल गनी लोन ने पाकिस्तान की भी आलोचना की और कहा कि वह कश्मीर की स्थिति को सुधारने के बजाय वहां अस्थिरता फैलाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया, "कश्मीर को बलात्कारी तरीके से लेना एक मूर्खतापूर्ण सोच है। सीमा पर कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, न पहले, न अब।"
नई दिशा की आवश्यकता
लोन ने यह भी कहा कि कश्मीर को अब एक नई दिशा की आवश्यकता है। "हमें इस गड़बड़ी से बाहर निकलना होगा, चाहे पाकिस्तान साथ हो या नहीं," उन्होंने कहा। उनका मानना है कि केवल एक वास्तविक राजनीतिक प्रक्रिया ही समाधान का मार्ग है।
युवाओं पर ध्यान केंद्रित
उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी पद की लालसा में राजनीति में नहीं आए हैं। उनका उद्देश्य कश्मीर के युवाओं के भविष्य को नई दिशा देना है। "शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर ही आज की असली आवश्यकता हैं," लोन ने कहा। उन्होंने माना कि सबसे अधिक नुकसान कश्मीर की अगली पीढ़ी को हुआ है और अब समय आ गया है कि युवाओं की भलाई के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
हिंसा का परिणाम
लोन ने कहा, "हिंसा ने हमें कुछ नहीं दिया। यह केवल तबाही और पीढ़ियों की बर्बादी का कारण बनी। अब हमें सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि जो भारत को हराने की कोशिश कर रहे थे, वे पूरी तरह विफल हो चुके हैं।"
राजनीतिक यात्रा का अवलोकन
अपनी राजनीतिक यात्रा के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें पीछे देखने का कोई अफसोस नहीं है, लेकिन यह ज़रूर अफसोस है कि वे उस समय कुछ खास नहीं कर सके। अब वे युवाओं की आकांक्षाओं को आवाज़ देना चाहते हैं और कश्मीर को स्थायी समाधान की ओर ले जाना चाहते हैं।