भारत और चीन के विकास में अंतर: एक गहन विश्लेषण
भारत और चीन के राष्ट्रवाद की तुलना
यह विडंबना है कि भारत में राष्ट्रवाद को अक्सर 'संकीर्णता' या 'सांप्रदायिकता' के रूप में देखा जाता है। वहीं, चीन में क्षेत्रीय स्वायत्तता, धार्मिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार, पर्यावरण संरक्षण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मूल्य तब तक स्वीकार्य हैं जब तक वे चीन के व्यापक लक्ष्यों में सहायक होते हैं। यदि कोई तत्व चीन के उद्देश्यों में बाधा डालता है, तो उसे कठोरता से निपटा जाता है।
भारत की विकास यात्रा में बाधाएं
भारत की प्रगति चीन की तुलना में काफी धीमी है, और इसके पीछे तीन प्रमुख कारण हैं। पहला, स्वतंत्र भारत अब भी औपनिवेशिक मानसिकता के प्रभाव में है, जो नीतिगत निर्णयों और सार्वजनिक विमर्श को प्रभावित कर रहा है। दूसरा, आजादी के बाद से वंशवादी राजनीति ने भारत को जकड़ रखा है, जिसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रहित नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति करना है। तीसरा, विदेशी वित्तपोषित आंदोलनों और एनजीओ ने विकास कार्यों में बाधा डाली है।
चीन की राजनीतिक स्थिरता
चीन में राजनीतिक स्थिरता का एक बड़ा कारण वहां के चार शीर्ष नेताओं का लंबे समय तक सत्ता में रहना है। इसके विपरीत, भारत में इस अवधि में नौ प्रधानमंत्री हुए, जिनमें से कई का कार्यकाल कमजोर रहा। केवल कुछ ही प्रधानमंत्री प्रभावी शासन देने में सफल रहे हैं।
आर्थिक विकास में अंतर
वर्ष 2000 में चीन की अर्थव्यवस्था 1.2 ट्रिलियन डॉलर थी, जो 2025 तक लगभग 19 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। वहीं, भारत की जीडीपी लगभग आधी ट्रिलियन से बढ़कर 4.1 ट्रिलियन डॉलर हो पाई है। यह अंतर दोनों देशों के विकास के तरीकों में भी दिखाई देता है।
बांध निर्माण में भिन्नताएं
चीन ने यांग्त्जी नदी पर 'थ्री गॉर्जेस बांध' को लगभग एक दशक में पूरा किया, जबकि भारत की सरदार सरोवर परियोजना को पूरा होने में 56 वर्ष लगे। यह विलंब मुख्यतः पर्यावरणीय और मानवाधिकार के मुद्दों के कारण हुआ।
भारत की विकास यात्रा में बाधाएं
भारत में पर्यावरण और मानवाधिकार के नाम पर कई परियोजनाओं को रोका गया है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है। उदाहरण के लिए, स्टरलाइट कॉपर प्लांट का बंद होना भारत को तांबे का शुद्ध आयातक बना दिया।
भविष्य की संभावनाएं
क्या भारत और चीन के बीच विकास का अंतर समाप्त हो सकता है? क्या भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है? भारतीयों में यह क्षमता है, लेकिन इसके लिए उन्हें वंशवादी राजनीति और विचारधाराओं को छोड़कर राष्ट्रहित को प्राथमिकता देनी होगी।
