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भारत का नया अंतरिक्ष मिशन: ग्लूकोज-इंसुलिन अध्ययन के साथ एक्सिओम-3 की सफलता

भारत ने अपने तीसरे मानव मिशन 'एक्सिओम-3' के तहत एक महत्वपूर्ण ग्लूकोज-इंसुलिन अध्ययन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इस मिशन में भारतीय वैज्ञानिक शुभांशु शुक्ला का योगदान महत्वपूर्ण है, जो अंतरिक्ष में मानव स्वास्थ्य पर प्रभावों को समझने में मदद करेगा। यह शोध अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है, विशेषकर दीर्घकालिक मिशनों के लिए। जानें इस अध्ययन के महत्व और शुभांशु शुक्ला की भूमिका के बारे में।
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भारत का नया अंतरिक्ष मिशन: ग्लूकोज-इंसुलिन अध्ययन के साथ एक्सिओम-3 की सफलता

भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान में नया मील का पत्थर स्थापित किया

भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और स्पेसएक्स के सहयोग से, एक्सिओम स्पेस ने अपने तीसरे मानव मिशन 'एक्सिओम-3' को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इस ऐतिहासिक मिशन का एक प्रमुख हिस्सा भारतीय वैज्ञानिक शुभांशु शुक्ला द्वारा संचालित 'ग्लूकोज-इंसुलिन' अध्ययन है, जो अंतरिक्ष में मानव स्वास्थ्य पर प्रभावों को समझने में महत्वपूर्ण साबित होगा।


इस अध्ययन का उद्देश्य अंतरिक्ष यात्रियों में लंबे समय तक रहने के दौरान होने वाले शारीरिक परिवर्तनों को समझना है, जिसमें 'इंसुलिन रेजिस्टेंस' एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं देतीं, जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। यह टाइप-2 डायबिटीज का कारण बन सकता है। शुभांशु शुक्ला का प्रयोग इसी समस्या की गहराई से जांच करने पर केंद्रित है।


एक्सिओम-3 मिशन के अंतरिक्ष यात्री ISS पर विशेष सेंसर पहनेंगे, जो उनके ग्लूकोज और इंसुलिन के स्तर की निरंतर निगरानी करेंगे। शुभांशु और उनकी टीम इन आंकड़ों का विश्लेषण करके यह जानने का प्रयास करेंगी कि शून्य गुरुत्वाकर्षण का इंसुलिन संवेदनशीलता और ग्लूकोज चयापचय पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह डेटा पृथ्वी पर स्वस्थ व्यक्तियों और डायबिटीज के रोगियों के डेटा से तुलना की जाएगी, ताकि अंतरिक्ष में होने वाले परिवर्तनों को बेहतर तरीके से समझा जा सके।


यह शोध अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर चंद्रमा और मंगल जैसे दीर्घकालिक मिशनों के लिए। यदि अंतरिक्ष में इंसुलिन रेजिस्टेंस या डायबिटीज जैसी स्थितियां विकसित होती हैं, तो इससे मिशन की सफलता और अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। इस अध्ययन से प्राप्त जानकारी भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिए बेहतर आहार, व्यायाम प्रोटोकॉल और संभावित चिकित्सा हस्तक्षेपों को विकसित करने में सहायक होगी।


शुभांशु शुक्ला, जो नासा एम्स रिसर्च सेंटर में वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, इस महत्वपूर्ण प्रयोग का नेतृत्व कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से ताल्लुक रखने वाले शुभांशु ने अपनी शिक्षा भारत में पूरी की है और अब वे वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। उनका यह योगदान भारत के लिए गर्व का क्षण है और यह दर्शाता है कि भारतीय वैज्ञानिक जटिल और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयासों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।


एक्सिओम-3 मिशन, एक्सिओम स्पेस का तीसरा निजी अंतरिक्ष यात्री मिशन है, जिसे 18 जनवरी, 2024 को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट और क्रू ड्रैगन कैप्सूल से लॉन्च किया गया था। इस मिशन की कमान नासा के पूर्व अंतरिक्ष यात्री माइकल लोपेज़-अलेग्रिया संभाल रहे हैं। उनके साथ इटली के वाल्टर विलाडी, तुर्की के अल्पर गेज़ेरावकी और स्वीडन के मार्कस वांड्ट शामिल हैं। यह दल अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लगभग 14 दिनों तक रहेगा, जहां वे विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देंगे, जिनमें शुभांशु शुक्ला का ग्लूकोज-इंसुलिन अध्ययन प्रमुख है।