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हिमाचल प्रदेश में बहुपति विवाह की अनोखी परंपरा

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में हाटी जनजाति के दो भाइयों ने एक ही महिला से बहुपति विवाह किया, जो एक अनोखी सामाजिक परंपरा का हिस्सा है। इस विवाह समारोह में पारंपरिक गीत और नृत्य का आयोजन किया गया। दुल्हन ने अपनी इच्छा से इस परंपरा को स्वीकार किया है। जानें इस विवाह के पीछे के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ के बारे में।
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हिमाचल प्रदेश में बहुपति विवाह की अनोखी परंपरा

शिलाई गांव में बहुपति विवाह का आयोजन

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के शिलाई गांव में हाटी जनजाति के दो भाई, प्रदीप और कपिल, ने एक ही महिला, सुनीता चौहान, से पारंपरिक 'बहुपति विवाह' किया। यह तीन दिवसीय समारोह 12 जुलाई 2025 को शुरू हुआ और इसमें पारंपरिक लोकगीतों और नृत्य का आयोजन किया गया।


भाइयों का निर्णय और पारिवारिक समर्थन

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, दोनों भाइयों ने इस निर्णय को आपसी सहमति से लिया और कहा कि उन पर कोई बाहरी दबाव नहीं था। प्रदीप ने कहा, “हमने इस परंपरा को सार्वजनिक रूप से अपनाया है, क्योंकि हमें इस पर गर्व है। यह एक संयुक्त निर्णय था।” वहीं, विदेश में काम कर रहे छोटे भाई कपिल ने कहा, “हम अपनी पत्नी को एकजुट परिवार के रूप में प्यार और समर्थन दे रहे हैं। हमने हमेशा पारदर्शिता में विश्वास किया है।”


दुल्हन की स्वीकृति

इच्छा से स्वीकार किया विवाह 

दुल्हन सुनीता, जो कुनहत गांव से हैं, ने बताया कि वह इस परंपरा से परिचित थीं और उन्होंने अपनी इच्छा से यह विवाह स्वीकार किया है। उन्होंने कहा, “मैं इस रिश्ते का सम्मान करती हूं और इसे समझदारी से स्वीकार किया है।”


सामाजिक परंपरा का महत्व

सामाजिक परंपरा का हिस्सा

यह विवाह हिमाचल प्रदेश के ट्रांस-गिरी क्षेत्र की एक सामाजिक परंपरा का हिस्सा है, जहां कुछ स्थानों पर बहुपति विवाह को मान्यता प्राप्त है। इस परंपरा को हिमाचल प्रदेश के राजस्व कानूनों में 'जोड़ीदारा' के रूप में कानूनी मान्यता मिली है।


हाटी समुदाय का विकास

अनुसूचित जनजाति का मिला दर्जा 

पिछले छह वर्षों में बद्हाना गांव में ऐसे पांच विवाह दर्ज किए गए हैं। हाटी समुदाय, जिसे 2022 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला था, हिमाचल-उत्तराखंड सीमा क्षेत्र में लगभग 450 गांवों में फैला हुआ है, जिसमें करीब तीन लाख लोग निवास करते हैं।


परंपरा का सामाजिक संदर्भ

बड़े संयुक्त परिवारों की आवश्यकता

केंद्रीय हाटी समिति के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने कहा कि यह परंपरा हजारों वर्षों पहले उन सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में विकसित हुई, जब पहाड़ी इलाकों में खेती और संसाधनों के संरक्षण के लिए बड़े संयुक्त परिवारों की आवश्यकता होती थी। उन्होंने कहा, “बड़े परिवारों में अधिक पुरुष होने से सामुदायिक सुरक्षा सुनिश्चित होती थी।” हालांकि, शिक्षा, सामाजिक बदलाव और आर्थिक विकास के चलते इस परंपरा का प्रचलन कम हो गया है, फिर भी कुछ क्षेत्रों में यह आज भी सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य है।