कृष्ण खन्ना: सौ साल की कला यात्रा और समर्पण

कृष्ण खन्ना का अद्वितीय कला सफर
कृष्ण खन्ना ने अपनी कला को कभी भी एक इवेंट या तमाशा नहीं बनाया। वे ऐसे चित्रकार थे जो बनावटी आधुनिकता के आवरण में नहीं लिपटे थे, और यह उनकी बॉडी लैंग्वेज में भी स्पष्ट था। चित्रकला की दुनिया में, खन्ना अपने समकालीन कलाकारों से पूरी तरह अलग हैं। उनके काम में आधुनिकता का शोर, भय या प्रदर्शन नहीं है। यही कारण है कि जब उन्होंने 5 जुलाई 1925 को पाकिस्तान के लायलपुर में जन्म लेकर अपने जीवन के सौ वर्ष पूरे किए, तो समकालीन कला की प्रमुख हस्तियों ने उन्हें सम्मानित करने के लिए एकत्रित हुए।
कला और साहित्य का समीक्षात्मक दृष्टिकोण
हम अक्सर कला और साहित्य की कृतियों का मूल्यांकन समीक्षकों की दृष्टि से करते हैं, लेकिन कुछ रचनाएं पाठकों और समीक्षकों दोनों की नजर में खरा उतरती हैं। हिंदी में प्रेमचंद, बंगाली में टैगोर और उर्दू में गालिब इसके उदाहरण हैं। भारतीय कला में भी राजा रवि वर्मा, टैगोर और नंदलाल बसु जैसे कलाकारों को समीक्षकों और दर्शकों ने समान रूप से सराहा है।
आधुनिकता और कला की चुनौतियाँ
भारतीय समाज में आधुनिकता के प्रवेश के साथ, साहित्य और कला भी इससे प्रभावित हुए हैं। हालांकि, इस आधुनिकता को अपनाने में कई चुनौतियाँ आई हैं। अब जब आधुनिकता को फिर से परिभाषित किया जा रहा है, तो उसकी सीमाएं भी स्पष्ट हो रही हैं। कुछ कलाकार ऐसे हैं जो आधुनिक होते हुए भी परंपरा से जुड़े हैं, और उनकी कला में बाहरी आवरण का आतंक कम है।
कृष्ण खन्ना का सौवां जन्मदिन
कृष्ण खन्ना ने अपने जीवन के 80 वर्ष रंगों और कैनवास को समर्पित किए हैं। वे गहरी मानवीय ऊष्मा और करुणा से भरे हुए कलाकार हैं। हालाँकि, अब सत्ता को ऐसे कलाकारों की पहचान नहीं है, लेकिन उनके चाहने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। 9 जुलाई को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में रजा फाउंडेशन द्वारा उनके जन्मदिन का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।
महिलाओं की प्रमुखता
इस कार्यक्रम की विशेषता यह थी कि सात में से पांच वक्ता महिलाएं थीं। सभी ने कृष्ण खन्ना के जीवन और कला पर गहन विचार किया। वक्ताओं ने उनके चित्रों की व्याख्या की और उनकी विशेषताओं पर चर्चा की। सभी ने सहमति जताई कि वे एक सबाल्टर्न चित्रकार हैं, जिनकी कला में विभाजन के दर्द से लेकर साधारण जीवन के अनुभव छिपे हैं।
कृष्ण खन्ना का जीवन और दृष्टिकोण
कृष्ण खन्ना ने विभाजन का दर्द झेला और पाकिस्तान से भारत आए। वे एक सजग कलाकार थे, जिन्होंने अपने आसपास के जीवन को देखा। उनकी कला में जीवन के उल्लास, अवसाद और दुख का समावेश है। उन्होंने अपनी कला को बाजार की चकाचौंध से दूर रखा, जबकि अन्य कलाकारों ने मीडिया का उपयोग किया। खन्ना ने अपनी कला को कभी भी इवेंट नहीं बनाया, और यही उनकी विशेषता है।