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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: किरायेदारों के अधिकार सीमित, मकान मालिकों को मिले नए अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने किरायेदारी विवाद में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें मकान मालिकों के अधिकारों को सशक्त किया गया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई किरायेदार वैध किरायानामा के तहत संपत्ति का कब्जा लेता है, तो वह बाद में मकान मालिक के स्वामित्व पर सवाल नहीं उठा सकता। यह निर्णय 70 साल पुराने विवाद का अंत करता है और किरायेदारों के दावों को खारिज करता है। जानें इस फैसले के प्रमुख बिंदु और मकान मालिकों के अधिकार।
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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: किरायेदारों के अधिकार सीमित, मकान मालिकों को मिले नए अधिकार

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मकान मालिकों के अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जो किरायेदारी से संबंधित विवादों में एक नया मोड़ ला सकता है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई किरायेदार वैध किरायानामा (Rent Agreement) के तहत संपत्ति का कब्जा लेता है, तो वह बाद में न तो मकान मालिक के स्वामित्व (Title) पर सवाल उठा सकता है और न ही 'विरोधी कब्जे' (Adverse Possession) के आधार पर उस संपत्ति पर अपना दावा कर सकता है।


70 साल पुराना विवाद समाप्त

70 साल पुराने विवाद का अंत
यह महत्वपूर्ण निर्णय जस्टिस जे. के. महेश्वरी और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने 1953 से चल रहे एक पुराने किरायेदारी विवाद (ज्योति शर्मा बनाम विष्णु गोयल) में सुनाया। इस फैसले ने ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व के निर्णयों को पलट दिया।


विवाद का विवरण

यह विवाद एक दुकान से संबंधित था, जिसे 1953 में किरायेदारों के पूर्वजों ने रामजी दास से किराए पर लिया था। वर्षों तक किराया रामजी दास और उनके उत्तराधिकारियों को दिया जाता रहा। 1999 की एक वसीयत के अनुसार, संपत्ति का स्वामित्व रामजी दास की बहू ज्योति शर्मा को मिला। ज्योति शर्मा ने अपने मिठाई और नमकीन व्यवसाय के विस्तार के लिए दुकान खाली कराने की मांग की।


किरायेदारों का दावा

किरायेदारों ने ज्योति शर्मा के मालिकाना हक को चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि यह संपत्ति वास्तव में रामजी दास के चाचा सुआलाल की थी और 1999 की वसीयत जाली है।


कोर्ट की सख्त टिप्पणी

कोर्ट की सख्त टिप्पणी: दावा 'मनगढ़ंत'
सुप्रीम कोर्ट ने किरायेदारों के दावों को 'मनगढ़ंत' और 'सबूतों से रहित' बताते हुए खारिज कर दिया। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि किरायेदारों द्वारा वर्षों तक रामजी दास और उनके उत्तराधिकारियों को किराया देना, मकान मालिक-किरायेदार के संबंध को स्पष्ट रूप से स्थापित करता है। अदालत ने कहा, 'जब कोई किरायेदार एक वैध किरायानामे के तहत संपत्ति का कब्जा स्वीकार करता है और किराया चुकाता है, तो उसे बाद में मकान मालिक के स्वामित्व को चुनौती देने से रोका जाता है।' इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि किरायेदारी के तहत मिला कब्जा 'अनुमत' (Permissive) होता है, न कि 'शत्रुतापूर्ण' (Hostile)। हालांकि, किरायेदारी की लंबी अवधि को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने किरायेदारों को बकाया किराया चुकाकर संपत्ति खाली करने के लिए छह महीने का समय दिया है।


मकान मालिकों के अधिकार

मकान मालिकों के क्या हैं अधिकार?
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय मकान मालिकों के अधिकारों को सशक्त बनाता है। भारत में किराया नियंत्रण अधिनियम और 2020 के मॉडल किरायेदारी अधिनियम के तहत प्रॉपर्टी ओनर्स को कई प्रमुख अधिकार दिए गए हैं। इसमें सबसे प्रमुख किराया बढ़ाने का अधिकार है, जिसके तहत मकान मालिक बाजार मूल्य के अनुसार किराया तय कर सकता है और आमतौर पर हर साल उसमें 10% तक की वृद्धि कर सकता है (हालांकि यह राज्य के नियमों पर निर्भर करता है)।


किरायेदारों को बेदखल करने के अधिकार

इसके अलावा, मकान मालिक को किरायेदार को बेदखल करने का अधिकार भी है। ऐसा विशेष परिस्थितियों में किया जा सकता है, जैसे- यदि किरायेदार संपत्ति का कोई हिस्सा किसी तीसरे व्यक्ति को (सबलेट) किराए पर देता है, रेंट एग्रीमेंट के किसी नियम का उल्लंघन करता है, या जब मकान मालिक को स्वयं अपने परिवार के उपयोग के लिए संपत्ति की आवश्यकता हो। साथ ही, अगर संपत्ति में बड़े मरम्मत कार्य की आवश्यकता है, जिसके चलते वहां रहना संभव नहीं है, तो मकान मालिक अस्थायी रूप से किरायेदार को घर खाली करने के लिए कह सकता है।