उपचुनाव में राजनीतिक दलों की जोरदार प्रतिस्पर्धा
उपचुनाव की स्थिति
आमतौर पर उपचुनाव में राजनीतिक दलों की सक्रियता कम होती है, खासकर जब परिणामों का सरकार की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन इस बार आठ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में सभी दलों ने जोरदार प्रयास किए हैं, भले ही इन सीटों के परिणामों का सरकार की सेहत पर कोई खास असर नहीं होगा। जम्मू कश्मीर की बडगाम और नागरोटा, राजस्थान की अंता, ओडिशा की नुआपाड़ा, तेलंगाना की जुबली हिल्स, झारखंड की घाटशिला और पंजाब की तरनतारन सीटों पर चुनावी गतिविधियाँ काफी उत्साहजनक रही हैं। सभी राज्यों में सरकारों ने चुनाव के लिए व्यापक तैयारी की है, जबकि विपक्ष ने भी अपनी पूरी ताकत लगाई है।
विशेष सीटों पर ध्यान
कश्मीर की बडगाम सीट मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इस्तीफे के कारण खाली हुई है, और इस सीट पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है। भाजपा की तुलना में पीडीपी इस सीट को जीतने के लिए अधिक प्रयास कर रही है। उमर की पार्टी के सांसद आगा रूहुल्ला खान ने प्रचार से मना कर दिया, जिससे चुनाव और भी दिलचस्प हो गया। नागरोटा सीट भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के भाई देवेंद्र सिंह के निधन के कारण खाली हुई है, और यहां भाजपा की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। ओडिशा की नुआपाड़ा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अपनी पूरी ताकत झोंकी है, जबकि भाजपा ने इस सीट पर उनके दिवंगत विधायक के बेटे को टिकट दिया है। तेलंगाना की जुबली हिल्स सीट के लिए कांग्रेस ने मोहम्मद अजहरूद्दीन को एमएलसी बना कर मंत्री बनाया है। राजस्थान की अंता सीट मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के राजनीतिक कौशल और प्रशासनिक कार्यों की परीक्षा का स्थान है।
