गुरु हरकृष्ण जी: केवल 7 वर्ष की आयु में गुरु बनने वाले अद्वितीय संत

गुरु हरकृष्ण जी का प्रेरणादायक जीवन
गुरु हरकृष्ण जी: केवल 7 वर्ष की आयु में गुरु बने! जानें गुरु हरकृष्ण साहिब जी की प्रेरणादायक जीवन कहानी: गुरु हरकृष्ण जयंती 2025 इस वर्ष शनिवार, 19 जुलाई को पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाएगी। सिख धर्म के आठवें गुरु, गुरु हरकृष्ण साहिब जी का जन्म 1656 में कीरतपुर साहिब में हुआ था।
वे केवल सात वर्ष की आयु में गुरु के पद पर आसीन हुए और अपने छोटे से जीवन में सेवा, ज्ञान और करुणा के माध्यम से सिख इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ गए।
बाल गुरु की अद्वितीय बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक क्षमता
गुरु हरकृष्ण जी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि उम्र ज्ञान का मापदंड नहीं होती। मात्र पांच वर्ष की आयु में गुरु पद प्राप्त करना उनके अद्वितीय चरित्र का परिचायक है।
वेदों और भगवद्गीता की गहरी समझ ने उन्हें ब्राह्मण विद्वानों को भी चकित कर दिया।
एक बार राजा जय सिंह ने उनकी बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेने के लिए अपनी रानी को दासी के रूप में भेजा। गुरु ने उसे तुरंत पहचान लिया, जिससे उनकी अंतर्दृष्टि और आध्यात्मिक क्षमता स्पष्ट हो गई।
दिल्ली की यात्रा और सेवा का उदाहरण
1661 में उन्हें गुरु पद सौंपा गया, लेकिन उनके बड़े भाई राम राय ने इसका विरोध किया। मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने इस विवाद को सुलझाने के लिए गुरु हरकृष्ण को दिल्ली बुलाया।
दिल्ली में उस समय हैजा और चेचक जैसी बीमारियों की महामारी फैली हुई थी। गुरु साहिब ने वहां पहुंचकर लोगों की सेवा की और बीमारों का उपचार किया, जिससे उन्हें 'बाला पीर' की उपाधि प्राप्त हुई।
अंततः वे स्वयं चेचक से संक्रमित होकर 1664 में केवल आठ वर्ष की आयु में देह त्याग कर गए।
उनके अंतिम शब्द थे — 'बाबा बकाले', जिससे संकेत मिला कि अगला गुरु बकाला गाँव में मिलेगा। और इसी स्थान पर गुरु तेग बहादुर जी को नवम गुरु के रूप में चुना गया।