बिहार चुनाव में कांग्रेस की हार: राहुल गांधी की रणनीति हुई विफल
कांग्रेस के लिए बड़ा झटका
नई दिल्ली: बिहार चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए एक गंभीर झटका साबित हुए हैं। यह हार केवल पार्टी के लिए नहीं, बल्कि राहुल गांधी के लिए भी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक असफलता मानी जा रही है। राहुल गांधी ने इस वर्ष की शुरुआत में बिहार का दौरा किया था और अगस्त में 'मतदाता अधिकार यात्रा' का आयोजन किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि भाजपा चुनावों में वोटों की चोरी कर रही है और चुनाव आयोग इस पर ध्यान नहीं दे रहा। कांग्रेस को उम्मीद थी कि राहुल गांधी की यह यात्रा 'भारत जोड़ो यात्रा' की तरह सकारात्मक प्रभाव डालेगी, जैसा कि लोकसभा 2024 और तेलंगाना विधानसभा चुनावों में हुआ था।
राहुल गांधी की यात्रा का असर
कांग्रेस नेता की यात्रा सासाराम से शुरू होकर पटना में समाप्त हुई थी। यह यात्रा लगभग 1,300 किलोमीटर लंबी थी और 25 जिलों तथा 110 विधानसभा क्षेत्रों से गुज़री। हालांकि, यह विडंबना है कि राहुल गांधी के गुजरने वाले क्षेत्रों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा। मौजूदा रुझानों के अनुसार, कांग्रेस 61 सीटों में से केवल चार सीटों- वाल्मीकिनगर, किशनगंज, मनिहारी और बेगूसराय पर ही आगे नजर आ रही है।
रणनीति में कमी
कांग्रेस का मानना था कि राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्राओं' से पार्टी को मजबूती मिली थी। 2022 और 2024 के बीच की इन यात्राओं में आने वाली 41 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। तेलंगाना में तो पार्टी ने सरकार भी बना ली थी, लेकिन बिहार में यह रणनीति सफल नहीं हो पाई।
एनडीए का उत्कृष्ट प्रदर्शन
वहीं, एनडीए गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया है। भाजपा और जेडीयू दोनों ने अपनी-अपनी अधिकांश सीटों पर बढ़त बना ली है। भाजपा 98 और जेडीयू 85 सीटों पर आगे है, जबकि दोनों ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। एनडीए के सहयोगी दलों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है। चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) 22 सीटों पर आगे है, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम 3 सीटों पर और जीतन राम मांझी की हम पार्टी 5 सीटों पर आगे है।
हार के कारण
कांग्रेस ने अपनी हार पर औपचारिक समीक्षा नहीं की होगी, लेकिन कुछ कारण स्पष्ट हैं:
1. महागठबंधन के दलों के बीच तालमेल की कमी।
2. कांग्रेस का तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में स्वीकार करने में झिझक। इससे मतदाताओं में यह भ्रम पैदा हुआ कि गठबंधन वास्तव में एकजुट है या नहीं।
3. रणनीति और संदेश का अभाव। राहुल गांधी की यात्रा ने कार्यकर्ताओं में उत्साह तो जगाया, लेकिन चुनाव के नजदीक आते-आते यह ऊर्जा कम हो गई। गठबंधन के भीतर खींचतान, गुटबाजी और नेतृत्व पर अस्पष्टता के कारण मतदाताओं में विश्वास नहीं बन पाया, जिसका नुकसान कांग्रेस और राजद दोनों को उठाना पड़ा।
