बिहार विधानसभा चुनाव 2025: आरजेडी को मिली निराशा, एनडीए की वापसी की संभावना
बिहार चुनाव परिणामों का विश्लेषण
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के लिए परिणाम अपेक्षित नहीं रहे हैं। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पार्टी को फिर से विपक्ष की भूमिका निभानी पड़ सकती है। दोपहर साढ़े 12 बजे तक की गणना में आरजेडी केवल 32 सीटों पर आगे चल रही थी, जिससे स्पष्ट हो गया कि जनता ने एक बार फिर पार्टी को सत्ता से दूर रखा है और नए जनादेश में भी आरजेडी को बड़ी बढ़त नहीं मिल पाई है.
हालांकि, इस निराशाजनक स्थिति के बीच पार्टी के लिए एक राहत की बात यह है कि वोट शेयर के मामले में आरजेडी सबसे आगे है। यह संकेत देता है कि पार्टी का जनसमर्थन अब भी मजबूत है और उसे राज्य में सबसे बड़ा वोट बैंक प्राप्त है.
क्या एनडीए की सत्ता में वापसी तय है?
क्या एनडीए की सत्ता में वापसी सुनिश्चित?
गिनती के ताजा रुझानों में भाजपा 85 सीटों पर आगे है, जबकि जेडीयू 77 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि एनडीए आराम से बहुमत की ओर बढ़ रहा है और एक बार फिर सरकार बनाने की स्थिति में है। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी 20 सीटों पर आगे चल रही है, जो चिराग के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक उपलब्धि मानी जा रही है. इन तीनों दलों के प्रदर्शन से यह तय है कि राज्य की सत्ता में एनडीए की वापसी लगभग सुनिश्चित हो गई है.
आरजेडी के लिए झटका
आरजेडी के लिए क्यों है झटका?
आरजेडी के लिए यह परिणाम एक और झटका है, क्योंकि पार्टी ने इस चुनाव में बदलते माहौल और बढ़ते जनसमर्थन के आधार पर सरकार बनाने की उम्मीद जताई थी। तेजस्वी यादव ने लगातार भाजपा और जेडीयू की नीतियों को निशाने पर रखते हुए चुनाव में बड़े बदलाव की बात कही थी। लेकिन नतीजों में यह उम्मीद जमीन पर पूरी होती नजर नहीं आ रही है.
कांग्रेस की स्थिति
क्या है कांग्रेस की स्थिति?
कांग्रेस भी केवल सात सीटों पर बढ़त बनाए हुए है, जिससे महागठबंधन की कुल स्थिति कमजोर हो गई है। वहीं, वाम दलों में सीपीआई एमएल को भी सात सीटें मिलने की संभावना है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि विपक्षी दलों के लिए यह चुनाव एक मजबूत चुनौती बनकर सामने आया है.
भविष्य के संकेत
भविष्य में आरजेडी के लिए क्या है संकेत?
हालांकि वोट शेयर में बढ़त आरजेडी के लिए भविष्य की राजनीति का सकारात्मक संकेत है। इसके आधार पर पार्टी यह दावा कर सकती है कि जनता उसके साथ है और कुछ सीटों पर हार का कारण गठबंधन की कमजोर तैयारी या स्थानीय समीकरण हो सकते हैं। लेकिन सीटों की कम संख्या के कारण पार्टी को सत्ता में लौटने के लिए कम से कम पांच साल और इंतजार करना होगा.
