बिहार विधानसभा चुनाव 2025: महागठबंधन की हार के पीछे की प्रमुख गलतियाँ
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन की स्थिति
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन की स्थिति चिंताजनक नजर आ रही है, जबकि एनडीए 203 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है और प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने की ओर अग्रसर है। महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव खुद अपनी सीट हारते हुए दिखाई दे रहे हैं, और पूरे गठबंधन का प्रदर्शन 34-35 सीटों तक सीमित होता नजर आ रहा है। एग्जिट पोल्स ने पहले ही महागठबंधन की हार की भविष्यवाणी की थी, लेकिन इस स्तर की शर्मनाक हार की उम्मीद नहीं थी.
महागठबंधन की हार के कारण
1. यादवों पर अधिक निर्भरता
आरजेडी ने 52 यादव उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का निर्णय लिया, जो कि पार्टी के पारंपरिक आधार को मजबूत करने का प्रयास था, लेकिन इसका विपरीत प्रभाव पड़ा। 'यादव-फर्स्ट' का संदेश गैर-यादव और कई ईबीसी समुदायों में पुरानी चिंताओं को फिर से जागृत कर गया। इससे विरोधियों को 'यादव राज की वापसी' का नैरेटिव बनाने का अवसर मिला, जिससे महागठबंधन का चुनावी दायरा संकुचित हो गया।
2. सहयोगियों की अनदेखी
कांग्रेस और वाम दलों को गठबंधन में शामिल किया गया, लेकिन उनकी भूमिका रणनीति और प्रचार में औपचारिक ही रही। 'तेजस्वी का संकल्प' जैसे अभियानों ने महागठबंधन को एक सामूहिक मंच के रूप में प्रस्तुत करने के बजाय आरजेडी-केंद्रित दिखाया। सीट बंटवारे में विवाद और कमजोर तालमेल ने वोट ट्रांसफर को प्रभावित किया। इसके विपरीत, एनडीए ने खुद को एक मजबूत और एकजुट विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।
3. बड़े वादे, लेकिन ठोस योजना का अभाव
तेजस्वी यादव ने हर घर को नौकरी, नई पेंशन योजना और शराबबंदी की समीक्षा जैसे बड़े वादे किए, लेकिन इन वादों के कार्यान्वयन, लागत और समयसीमा पर स्पष्टता नहीं दी गई। बार-बार टाले गए ब्लूप्रिंट ने जनता में संदेह पैदा किया। आज के जागरूक मतदाता सपनों से ज्यादा विश्वसनीय रोडमैप की तलाश में हैं। ऐसे में 'ग्रैंड प्रॉमिस, नो स्ट्रैटेजी' का दृष्टिकोण महागठबंधन के लिए भारी पड़ा।
4. प्रो-मुस्लिम नैरेटिव
कई चुनावी भाषणों और विवादों ने यह धारणा बनाई कि गठबंधन मुस्लिम वोटों पर अत्यधिक निर्भर है। विपक्ष ने पुराने बयानों और वक्फ बिल विवाद को उछालकर इसे और बढ़ावा दिया। इससे मध्यवर्ग, गैर-यादव ओबीसी और कई यादव मतदाता असहज महसूस करने लगे। पहचान-आधारित राजनीति का डर कई वर्गों में पनपा, जिसने वोटों को बिखेर दिया।
5. लालू यादव की विरासत से निपटने में असमंजस
तेजस्वी यादव 'सामाजिक न्याय' की विरासत और 'जंगल राज' की आलोचना के बीच झूलते रहे। पिता की छवि से दूरी बनाना और साथ ही उनका एजेंडा अपनाना विरोधाभासी संदेश बन गया। नरेंद्र मोदी का यह तंज कि 'पिता के पाप छिपा रहे हो' प्रभावी साबित हुआ, क्योंकि महागठबंधन का प्रेजेंटेशन अस्पष्ट था। यह भ्रम नेतृत्व की विश्वसनीयता पर भारी पड़ा.
