बिहार विधानसभा चुनाव: एनडीए की संभावनाएं और नीतीश कुमार की रणनीति
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार
बिहार विधानसभा चुनाव समाप्त हो चुका है और अब सभी की नजरें परिणामों पर टिकी हैं। अधिकांश एक्जिट पोल एनडीए के सत्ता में लौटने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं। असली परिणाम 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। इस चुनाव ने भाजपा के लिए कई महत्वपूर्ण सबक दिए हैं। भाजपा के नेता नीतीश कुमार को किनारे करने की कोशिश में थे, लेकिन अंततः उन्हें नीतीश की शरण में जाना पड़ा। नीतीश ने इस स्थिति को भांप लिया और अपनी नाराजगी भी जाहिर की। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया। दोनों नेताओं की रैलियां अलग-अलग आयोजित की गईं। नीतीश कुमार ने हेलीकॉप्टर से और सड़क मार्ग से अपनी जनसभाएं कीं, जबकि उनकी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर चर्चाएं होती रहीं। उन्होंने लगभग 70 रैलियां कीं और पटना में मोदी के रोडशो में भी शामिल नहीं हुए।
भाजपा की रणनीति और नीतीश की प्रतिक्रिया
इसके अलावा, जनता दल यू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में शामिल होने वाले नेताओं की सूची में कई प्रदेश प्रवक्ता स्तर के नेताओं के नाम दिए। कहा गया कि जो नेता खाली होगा, वह प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में भाग लेगा। भाजपा के नेताओं को यह बात अप्रिय लगी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। सूत्रों के अनुसार, भाजपा की रणनीति की दो बातें नीतीश को परेशान कर रही थीं। पहली, मुख्यमंत्री पद के दावेदार की घोषणा नहीं की गई। अक्टूबर 2005 से अब तक चार चुनावों में नीतीश हमेशा सीएम दावेदार रहे हैं। दूसरी बात यह थी कि नीतीश ने 105 सीटों की सूची सौंपी थी और 103 पर समझौता करने की बात कही थी। वे एक सीट अधिक लेकर भी बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहते थे। लेकिन भाजपा ने उनकी सेहत और पार्टी के नेताओं के साथ करीबी का फायदा उठाकर उन्हें बराबरी पर ला दिया। यह पहली बार है जब विधानसभा में भाजपा और जदयू समान रूप से लड़ रहे हैं।
