बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान का प्रभावी प्रदर्शन
बिहार चुनाव के रुझान और सोशल मीडिया पर चर्चा
पटना: शुक्रवार दोपहर जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम स्पष्ट होने लगे, सोशल मीडिया पर चर्चाओं का दौर तेज हो गया। इसका मुख्य कारण एनडीए का मजबूत प्रदर्शन और चिराग पासवान की पार्टी LJP(R) का उत्कृष्ट प्रदर्शन था। राजनीतिक हलकों में चिराग की भूमिका को 'फिनिशर' के रूप में देखा जा रहा है, जैसे क्रिकेट में रविंद्र जडेजा अंतिम ओवरों में खेल का रुख बदल देते हैं।
29 सीटों पर दांव, 23 पर बढ़त
इस चुनाव में LJP(RV) ने 29 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए, जबकि बीजेपी और जेडीयू ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा। एनडीए की प्रमुख पार्टियों ने मजबूत शुरुआत की और अंतिम समय में चिराग पासवान की पार्टी ने गठबंधन को महत्वपूर्ण बढ़त दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
लोकसभा 2024 में चिराग का कमाल
2024 के लोकसभा चुनाव में 5 सीटों पर जीत हासिल कर चिराग पासवान ने राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बने थे, तब प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें 'हनुमान' की उपाधि दी थी। विधानसभा चुनाव 2025 में उन्होंने अपनी पहचान को और मजबूत किया है। 29 में से 23 सीटों पर बढ़त के साथ उनकी पार्टी का स्ट्राइक रेट लगभग आदर्श रहा। मगध, सीमांचल और पाटलिपुत्र क्षेत्रों में LJP(RV) ने 5% से अधिक वोट शेयर प्राप्त किया।
NDA को मिला परफेक्ट वोट ट्रांसफर
एग्जिट पोल के विपरीत, वास्तविकता में NDA वोट का सुचारू ट्रांसफर सबसे बड़ा कारक रहा। बीजेपी और जेडीयू के समर्थकों ने LJP(RV) के उम्मीदवारों को बड़े पैमाने पर वोट दिया, और चिराग पासवान ने भी गठबंधन के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुए वोट ट्रांसफर को मजबूती प्रदान की।
2020 की तुलना में चौंकाने वाला बदलाव
चिराग का यह प्रदर्शन 2020 विधानसभा चुनाव के बिल्कुल विपरीत है। उस समय LJP(RV) ने 137 सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल एक जीत हासिल की थी, जबकि इस बार NDA के साथ रहते हुए उन्होंने न केवल अपनी पार्टी की स्थिति को मजबूत किया, बल्कि नीतीश कुमार और पूरे गठबंधन की सीटों में भी वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
NDA में चिराग का बढ़ता कद
इस चुनाव ने चिराग पासवान को NDA में एक मजबूत स्तंभ के रूप में स्थापित कर दिया है। उन्होंने एक बार फिर साबित किया है कि वे गठबंधन की जीत में 'हनुमान' की भूमिका निभाने में सक्षम हैं। जेडीयू और LJP(RV) के बीच लंबे समय से चली आ रही तकरार के बावजूद, यह सफलता चिराग की राजनीतिक पूंजी को और बढ़ाएगी और भविष्य में बिहार की राजनीति में नए समीकरणों का निर्माण कर सकती है।
