विपक्ष के बहिष्कार के बावजूद जेपीसी का गठन: एक ऐतिहासिक घटना
जेपीसी का गठन और विपक्ष का बहिष्कार
आजाद भारत के इतिहास में संभवतः पहली बार ऐसा हुआ है कि समस्त विपक्ष के बहिष्कार के बावजूद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया है। पहले भी विपक्षी दलों ने जेपीसी का बहिष्कार किया है, लेकिन तब मुख्य विपक्षी दल या अन्य प्रमुख पार्टियां इसमें शामिल होती थीं। इस बार, कोई भी बड़ी पार्टी इसमें भाग नहीं ले रही है।
संयुक्त संसदीय समिति में विचार के लिए लाए गए तीन विधेयकों पर चर्चा की जाएगी, जिनमें मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को गिरफ्तार करने या 30 दिन की हिरासत के बाद पद से हटाने का कानून शामिल है। इस समिति में कांग्रेस सहित किसी भी प्रमुख विपक्षी पार्टी का सांसद नहीं है। सरकार ने अगस्त में संविधान के 130वें संशोधन का विधेयक पेश किया था, जिसे जेपीसी में भेजने का प्रस्ताव पास किया गया। इसके बाद से लोकसभा स्पीकर जेपीसी के गठन के प्रयास में लगे रहे और अंततः शीतकालीन सत्र से पहले बिना विपक्ष के जेपीसी का गठन कर दिया गया।
जेपीसी में विपक्ष का प्रतिनिधित्व
इस जेपीसी में विपक्ष की ओर से खानापूर्ति के लिए केवल तीन सांसद शामिल किए गए हैं। इनमें एनसीपी के शरद पवार गुट की सुप्रिया सुले, ऑल इंडिया एमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल शामिल हैं। शरद पवार की पार्टी के पास कुल आठ सांसद हैं, जबकि लोकसभा में विपक्ष के पास लगभग 250 सांसद हैं। कुछ दल तटस्थ हैं, लेकिन सरकार को 293 सांसदों का समर्थन प्राप्त है। इस प्रकार, 250 सांसदों वाले विपक्ष से केवल तीन सांसदों का प्रतिनिधित्व होगा।
विपक्ष का विरोध और सरकार की दलीलें
विपक्षी दल इन विधेयकों के पीछे सरकार की मंशा को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि यह कानून विपक्षी नेताओं को पद से हटाने की योजना के तहत लाया जा रहा है। दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के जेल से सरकार चलाने की घटना के बाद ऐसा कानून लाना आवश्यक हो गया है। यह ध्यान देने योग्य है कि पहले यह प्रक्रिया नैतिकता के आधार पर होती थी, जहां नेता गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा दे देते थे। लेकिन केजरीवाल ने गिरफ्तारी के बाद भी इस्तीफा नहीं दिया और 156 दिन तक जेल से सरकार चलाते रहे। इसके बाद, सरकार ने विधेयक पेश किया, जिसे अधिकांश प्रादेशिक पार्टियों ने पहले ही दिन से विरोध किया। समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी आदि ने जेपीसी के बहिष्कार का ऐलान किया। कांग्रेस ने विपक्षी दलों को मनाने का प्रयास किया, लेकिन वे अपने निर्णय पर अड़े रहे। अंततः कांग्रेस को भी जेपीसी के बहिष्कार का निर्णय लेना पड़ा।
