एक रोगी की नाभि से राई एवं जीरा निकला
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कोटा, 27 फरवरी (हि.स.)। शहर में एक 30 वर्ष मरीज की दुर्लभ बीमारी का मामला सामने आया है, जिसमें पिछले छह महीनों से उसे नाभि से मवाद व पानी आने के साथ राई के दाने व जीरा निकलने जैसी शिकायत हो रही थी। इस बीमारी का कारण समझ में नहीं आने पर मरीज ने जिंदल लेप्रोस्कॉपी हॉस्पिटल के अनुभवी सर्जन डॉ दिनेश जिंदल से परामर्श लिया। जिन्होंने दूरबीन ऑपरेशन कर रोगी को तुरंत राहत प्रदान की।
मरीज की तकलीफ को देखते हुये डॉ जिंदल ने कहा कि यह एक दुर्लभ व जटिल मामला है। पेट की जांच के लिये तुरंत सीटी स्कैन कराया गया। जिससे सामने आया कि सात सेंटीमीटर लम्बी व छह मिलीमीटर मोटी नाली नाभि से छोटी आंत तक जुड़ी हुई मिली। मरीज को पिछले चार वर्षो से पेट दर्द व घबराहट की शिकायत रहती थी। परिजनाें ने इससे पहले ब्यावर, भीलवाडा़ व अजमेर में चिकित्सकों से जांच कराई लेकिन उसे राहत नहीं मिल सकी थी।
जिंदल हॉस्पिटल के चिकित्सकों की टीम ने दूरबीन द्वारा दुर्लभ ऑपरेशन कर नाभि की नाल से चिपकी हुई आंतों को छुड़ा कर इस फिस्टुला को हार्मोनिक नाइफ द्वारा सावधानी से अलग किया। इसके पश्चात् इस नाली को एन्डो बैग में रख कर निकाला गया। उन्होंने बताया कि अधिकांश मामलों में आंत में रूकावट होती हे या आंत घूम जाती है। लेकिन इस केस में यह आंत से जुड़ा होने के कारण नाभि से खाद्य पदार्थ विसर्जित होने लगे थे। ऐसे रोगियों में यह एक दुर्लभ मामला हे।
उन्होंने बताया कि सामान्यतः इस बीमारी का पता जन्म के एक दो वर्ष में ही लग जाता है। कभी-कभी आंतो में रूकावट होने से दर्द होने लगता है। परन्तु 30 वर्ष की उम्र में जाकर इसका पता चलना बहुत ही दुर्लभ है। इस जटिल ऑपरेशन को वरिष्ठ दूरबीन शल्य चिकित्सक डॉ. दिनेश जिंदल, निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. अंकुर जैन एवं सहायक नाजिम अख्तर, कमल राठौर व कलीम खान की टीम ने किया। ऑपरेशन के बाद रोगी की स्थिति सामान्य हो गई है।
क्या है बच्चों में वीआईडी-
डॉ जिंदल के अनुसार, गर्भ में ओमफेलोमी सेंट्रिक डक्ट भ्रूण को 3 से 9 सप्ताह तक भोजन उपलब्ध कराती है। उसके बाद प्लासेंटा द्वारा भोजन पदार्थ माँ के माध्यम से प्रदान किये जाते है। जन्म के बाद कभी-कभी यह सरचना रह जाती हे जिसे वीआईडी (विटेलो इंस्टीनल डक्ट) या अनमोली कहते है। चिकित्सा विज्ञान में वयस्क उम्र तक इस स्थिति का बने रहना दुर्लभ होता है।
हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द