दिल्ली की हवा में माइक्रोप्लास्टिक का खतरनाक स्तर: नई शोध रिपोर्ट
दिल्ली की जहरीली हवा पर नई चिंता
नई दिल्ली: दिल्ली की वायु गुणवत्ता पहले से ही चिंताजनक मानी जाती है, लेकिन हालिया अध्ययन ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है। इस शोध में बताया गया है कि दिल्ली-एनसीआर की हवा में केवल धूल और धुएं के साथ-साथ सूक्ष्म माइक्रोप्लास्टिक के कण भी पाए जाते हैं, जो हर सांस के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर रहे हैं।
कोलकाता के भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER) और एम्स कल्याणी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि दिल्ली की हवा में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा 14.18 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। इसका मतलब है कि हर घन मीटर हवा में सैकड़ों सूक्ष्म प्लास्टिक के कण मौजूद हैं। ये कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें देख पाना संभव नहीं है, लेकिन ये हमारे फेफड़ों में धीरे-धीरे जमा होते रहते हैं।
सर्दियों में प्रदूषण की समस्या का बढ़ना
अध्ययन में यह भी पाया गया कि कोलकाता में 14.23, चेन्नई में 4, और मुंबई में 2.65 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है। इस प्रकार, दिल्ली इस मामले में सबसे आगे है। विशेषज्ञों का कहना है कि सर्दियों में प्रदूषण की समस्या और बढ़ जाती है, क्योंकि इस समय हवा जमीन के करीब रुक जाती है। इसके अलावा, ठंड में लोग सिंथेटिक कपड़े अधिक पहनते हैं, जिससे प्लास्टिक के रेशे हवा में मिल जाते हैं। ट्रैफिक और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में यह प्रदूषण 14 से 71 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
माइक्रोप्लास्टिक के स्वास्थ्य पर प्रभाव
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि ये माइक्रोप्लास्टिक केवल प्लास्टिक नहीं, बल्कि जहरीले रसायन, डाई, कार्बन, बैक्टीरिया और फंगस भी अपने साथ लाते हैं। इन सूक्ष्म जीवों में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस जीन पाए गए हैं, जिसका अर्थ है कि ऐसे संक्रमणों का इलाज सामान्य दवाओं से करना मुश्किल हो सकता है।
प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
लंबे समय तक इस प्रकार की हवा में सांस लेने से फेफड़ों में सूजन, सांस संबंधी बीमारियां, हार्मोन असंतुलन, और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अब समय आ गया है कि सरकार और नागरिक दोनों इस दिशा में ठोस कदम उठाएं। प्रदूषण को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग बढ़ाना, प्लास्टिक का उपयोग घटाना और हवा को साफ रखने के उपायों को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
यह शोध 2 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनवायरनमेंटल इंटरनेशनल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि अब भी सावधानी नहीं बरती गई, तो दिल्ली की हवा भविष्य में और भी खतरनाक हो सकती है।
