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उत्पन्ना एकादशी: व्रत के नियम और सावधानियाँ

उत्पन्ना एकादशी हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण तिथि है, जो पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का अवसर प्रदान करती है। इस दिन व्रत करने के लिए कुछ विशेष नियम और सावधानियाँ हैं। जानें कि इस दिन आपको क्या करना चाहिए और किन चीजों से बचना चाहिए। यह जानकारी आपको इस पवित्र दिन का सही तरीके से पालन करने में मदद करेगी।
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उत्पन्ना एकादशी: व्रत के नियम और सावधानियाँ

उत्पन्ना एकादशी पर व्रत का महत्व


उत्पन्ना एकादशी पर व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति


हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु से देवी एकादशी प्रकट हुई थीं, जिन्होंने मूर नामक राक्षस का वध किया। इसलिए इसे सभी एकादशी व्रतों की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं कि इस दिन हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।


उत्पन्ना एकादशी के दिन क्या करें


  • दशमी तिथि की रात में सात्विक भोजन: व्रत के एक दिन पहले सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

  • सुबह स्नान: एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।

  • भगवान विष्णु की पूजा: भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और एकादशी देवी की पूजा करें।

  • तुलसी की पूजा: तुलसी के पौधे की पूजा करना और शाम को घी का दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

  • व्रत कथा और मंत्र जाप: एकादशी व्रत कथा पढ़ें या सुनें और पूरे दिन मंत्र का जाप करें।

  • जागरण: रात में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।

  • द्वादशी तिथि को पारण: व्रत का पारण द्वादशी तिथि को शुभ मुहूर्त में करें।


उत्पन्ना एकादशी के दिन क्या न करें


  • चावल का सेवन: इस दिन चावल, जौ और दालों का सेवन न करें।

  • तामसिक भोजन: लहसुन, प्याज, मांसाहार और नशे का सेवन न करें।

  • क्रोध और अपशब्द: मन में किसी के प्रति क्रोध या निंदा न रखें।

  • पेड़-पौधों को नुकसान: तुलसी के पत्ते न तोड़ें।

  • ब्रह्मचर्य का पालन: पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।

  • दूसरों की बुराई: किसी की बुराई करने से व्रत का फल नष्ट हो जाता है।