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कालभैरव जयंती: ग्रहों का विशेष संयोग और पूजा का महत्व

कालभैरव जयंती, भगवान शिव के भैरव रूप की स्मृति में मनाई जाती है। यह पर्व अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आता है। 2025 में यह 12 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन विशेष ग्रह संयोग बन रहे हैं, जो साधना और भक्ति के लिए अत्यंत शुभ माने जाते हैं। जानें इस दिन की विशेषताएँ, पूजा का सही समय और ग्रह स्थिति का महत्व।
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कालभैरव जयंती: ग्रहों का विशेष संयोग और पूजा का महत्व

भाग्य का जागरण


कालभैरव जयंती, नई दिल्ली: यह पर्व भगवान शिव के भैरव रूप की याद में मनाया जाता है, जब उन्होंने ब्रह्मा जी के अहंकार को समाप्त करने के लिए भैरव का रूप धारण किया था। यह दिन केवल पूजा का नहीं, बल्कि भय पर विजय और धर्म की रक्षा का प्रतीक है। हर साल यह पर्व अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह विशेष दिन 12 नवंबर, बुधवार को आएगा। इस दिन ब्रह्म योग, शुक्ल योग और आश्लेषा नक्षत्र जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं, जो साधना और भैरव आराधना के लिए अत्यंत लाभकारी माने जाते हैं।


विशेष योग का महत्व

इस दिन बनने वाले योग



  • इस दिन का आरंभ शुक्ल योग से होगा, जो प्रात: 08:02 बजे तक रहेगा। यह योग मन की पवित्रता और सात्त्विक भावनाओं को बढ़ावा देता है। इसके बाद, दिनभर ब्रह्म योग प्रभावी रहेगा, जो ज्ञान और साधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इसके अतिरिक्त, बालव करण (10:57 बजे तक) और कौलव करण (10:58 बजे तक) भी रहेंगे, जो पूजा और व्रत के लिए शुभ हैं।

  • कालभैरव जयंती पर अष्टमी तिथि, आश्लेषा नक्षत्र, शुक्ल योग, ब्रह्म योग और कौलव करण का दुर्लभ संगम बन रहा है। यह दिन भक्ति और साधना के लिए अत्यंत शुभ रहेगा। रात्रिकाल में दीपदान, भैरव चालीसा, और कुत्तों को भोजन कराने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

  • शुक्ल योग और ब्रह्म योग का मिलन साधक को आध्यात्मिक शक्ति और भय से मुक्ति प्रदान करता है। यह दिन केवल पूजा का नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश, भय पर निर्भयता और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है।


पूजा का समय और तिथि

तिथि और पूजा का समय


इस वर्ष कालभैरव जयंती की अष्टमी तिथि 11 नवंबर की रात 11:08 बजे से शुरू होकर 12 नवंबर की रात 10:58 बजे तक रहेगी। यह अवधि भगवान कालभैरव की आराधना के लिए अत्यंत पवित्र मानी गई है, विशेषकर रात्रिकाल में पूजा करने से भक्त को शीघ्र फल प्राप्त होता है।


अष्टमी तिथि तांत्रिक साधनाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, क्योंकि इस दिन की ऊर्जा भैरव साधना से जुड़ी होती है। जब यह तिथि बुधवार को आती है, तो बुध की ग्रह-शक्ति भैरव उपासना के फल को कई गुना बढ़ा देती है, जिससे पूजा अत्यंत सिद्धिदायक बन जाती है।


ग्रह स्थिति और नक्षत्र

नक्षत्र और ग्रह स्थिति


12 नवंबर को पूरे दिन आश्लेषा नक्षत्र का प्रभाव रहेगा, जो सायं 06:35 बजे तक सक्रिय रहेगा। यह नक्षत्र रहस्यमय साधना और भैरव उपासना के लिए अनुकूल माना जाता है। इस नक्षत्र के प्रभाव से साधक का मन अधिक केंद्रित और आध्यात्मिक हो जाता है।


सायंकाल के बाद जब चंद्रमा सिंह राशि में प्रवेश करेंगे, तब शौर्य और आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। तुला राशि में स्थित सूर्यदेव इस दिन संतुलन और विवेक का मार्ग दिखाते हैं, जिससे भक्ति और शक्ति दोनों का सुंदर संतुलन बनता है।