गुरु हरकृष्ण जयंती 2025: बाल गुरु की प्रेरणादायक जीवन गाथा

गुरु हरकृष्ण जयंती: बाल गुरु का दिव्य जीवन
गुरु हरकृष्ण जयंती 2025:
गुरु हरकृष्ण जयंती: सेवा और विनम्रता का प्रतीक
दिल्ली में चेचक की महामारी के दौरान उनके करुणामय कार्यों ने उन्हें 'बाला पीर' की उपाधि दिलाई, जब उन्होंने बीमारों को सांत्वना और उपचार प्रदान किया। दुर्भाग्यवश, उनका निधन 1664 में केवल आठ वर्ष की आयु में हो गया।
बाल गुरु के जीवन से प्रेरणा
गुरु हरकृष्ण जी का जीवन सेवा, विनम्रता और दया का प्रतीक है। महज पाँच वर्ष की उम्र में गुरु बनकर जन सेवा करना उनके अद्वितीय व्यक्तित्व को दर्शाता है।
दिल्ली में रहते हुए वे राजा राय सिंह के बंगले में ठहरे थे, जिसे अब बंगला साहिब गुरुद्वारा के नाम से जाना जाता है। यहाँ हर साल भव्य समारोह आयोजित होते हैं।
उनकी शिक्षाएँ आज भी सिख समुदाय को निःस्वार्थ सेवा, समर्पण और समान दृष्टिकोण रखने की प्रेरणा देती हैं। लोग उनकी स्मृति में गुरुद्वारों में एकत्र होकर कीर्तन, कथा और अरदास करते हैं।
गुरुद्वारों में जयंती का उत्सव
गुरु हरकृष्ण जयंती को सिख समुदाय विशेष रूप से सेवा और भक्ति के रूप में मनाता है। इस दिन गुरुद्वारों में कीर्तन और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है।
अरदास में भक्त गुरु साहिब से स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं। बंगला साहिब में विशेष आयोजन होते हैं, जहाँ भक्त श्रद्धा से पूजन करते हैं।
इस अवसर पर लंगर की व्यवस्था होती है, जहाँ सभी धर्मों और जातियों के लोगों को निशुल्क भोजन परोसा जाता है। यह सिख धर्म की समर्पण और समता की भावना को दर्शाता है।
सेवा और समाज के लिए समर्पण
गुरु हरकृष्ण जी के नाम पर शहरों में मीठा जल वितरण कैंप लगाए जाते हैं, जहाँ यात्रियों को शीतल जल पिलाया जाता है। यह परंपरा वर्षों से जारी है और आज भी लोगों की सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर भी इस अवसर पर विशेष कार्यक्रमों से जीवंत हो उठता है। भक्त पवित्र सरोवर में स्नान कर गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
यह जयंती केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक सामाजिक जागरूकता का भी संदेश देती है, जो गुरु की शिक्षाओं को आज की पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य करती है।