विश्वकर्मा जयंती: शिल्पकारों का पर्व और उनकी पूजा

विश्वकर्मा जयंती का महत्व
विश्वकर्मा जयंती आज मनाई जा रही है। यह पर्व भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है, जिन्हें हिंदू धर्म में वास्तुकार, इंजीनियर और शिल्पकार के रूप में पूजा जाता है। इस दिन कारीगर, इंजीनियर और विभिन्न व्यवसायी अपने औजारों और कार्यस्थलों की पूजा करते हैं, ताकि उनके काम में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति हो सके।
भगवान विश्वकर्मा का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा वास्तुदेव और अंगिरसी के पुत्र माने जाते हैं। कुछ ग्रंथों में उन्हें ब्रह्मा जी का मानस पुत्र भी कहा गया है। उनका जन्म कन्या संक्रांति के दिन हुआ था, इसलिए हर साल 17 सितंबर को यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
भगवान विश्वकर्मा का चित्रण
उन्हें चार भुजाओं, सुनहरे रंग और शिल्प औजारों के साथ चित्रित किया जाता है। कई ग्रंथों में उनके पांच मुखों का वर्णन मिलता है, जिनमें सद्योजात, वामदेव, अघोर, तत्पुरुष और ईशान शामिल हैं।
भगवान विश्वकर्मा की कारीगरी
हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा को महान शिल्पी के रूप में सम्मानित किया गया है। उन्होंने स्वर्गलोक, सोने की लंका, द्वारका और हस्तिनापुर का निर्माण किया। जगन्नाथ पुरी मंदिर की विशाल मूर्तियां और रामायण का पुष्पक विमान भी उनकी कारीगरी का प्रतीक हैं।
विशेष पूजा और परंपराएं
इस दिन कारखानों और दफ्तरों में विशेष पूजा की जाती है। लोग अपने औजारों को साफ करते हैं और भगवान विश्वकर्मा से प्रगति की प्रार्थना करते हैं। यह पर्व मेहनत और रचनात्मकता का उत्सव है।
भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित दिव्य अस्त्र
भगवान विश्वकर्मा ने न केवल नगरों और भवनों का निर्माण किया, बल्कि देवताओं के लिए दिव्य अस्त्र भी बनाए, जैसे भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और भगवान शिव का त्रिशूल।