गर्भावस्था में आयुर्वेद का महत्व: जानें क्या करें और क्या न करें
गर्भावस्था का संवेदनशील समय
नई दिल्ली: मातृत्व एक अद्भुत यात्रा है, लेकिन गर्भावस्था का समय विशेष रूप से संवेदनशील होता है। इस दौरान मां और बच्चे दोनों का ध्यान रखना आवश्यक है। आयुर्वेद के अनुसार, सही आहार, नियमित दिनचर्या और सकारात्मकता से न केवल मां स्वस्थ रहती है, बल्कि बच्चे का विकास भी सही तरीके से होता है।
गर्भसंस्कार का महत्व
आयुर्वेद गर्भावस्था के नौ महीनों को 'गर्भसंस्कार' का महत्वपूर्ण समय मानता है। गर्भवती महिला की खान-पान, सोच और भावनाएं सीधे बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रभाव डालती हैं। इसलिए, इस अवधि में एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से मां और बच्चे दोनों को लाभ होता है।
स्वस्थ आहार और दिनचर्या
गर्भवती महिलाओं को हल्का, सुपाच्य और पौष्टिक भोजन लेना चाहिए। रात में जल्दी सोना और दिन में पर्याप्त आराम करना भी जरूरी है। सकारात्मकता बनाए रखने के लिए अच्छी किताबें पढ़ें, मधुर संगीत सुनें और हल्का घरेलू काम करें। गर्भावस्था योग और प्राणायाम भी फायदेमंद होते हैं।
गर्भावस्था में क्या न करें
आयुर्वेद गर्भवती महिलाओं को कुछ चीजों से बचने की सलाह देता है। भारी काम, अधिक मेहनत और लंबे समय तक खड़े रहना हानिकारक हो सकता है। उबड़-खाबड़ रास्तों पर यात्रा से बचें और अधिक मसालेदार या तला-भुना भोजन न करें। देर रात तक जागना, क्रोध और तनाव भी हानिकारक हैं।
आहार में शामिल करें
आयुर्वेद में गर्भिणी के लिए मीठा, चिकना और पोषण देने वाला आहार लेने की सलाह दी गई है। ताजा गाय का दूध, घर का मक्खन, देसी घी और हल्का नॉनवेज (यदि शाकाहारी नहीं हैं) लाभकारी होते हैं। शतावरी, अश्वगंधा और ब्राह्मी जैसी जड़ी-बूटियों का सेवन चिकित्सक की सलाह से करें।
स्नान और देखभाल
मौसम के अनुसार स्नान के पानी में बिल्व पत्र, दालचीनी और अन्य जड़ी-बूटियां डालकर स्नान करें। इससे त्वचा और मन को शांति मिलती है। नियमित रूप से स्त्री रोग विशेषज्ञ और आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में जांच कराना भी आवश्यक है।
