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भारत की महिला क्रिकेट टीम ने जीता पहला वनडे विश्व कप, रेणुका ठाकुर की गेंदबाजी ने दिल जीते

भारत की महिला क्रिकेट टीम ने 2 नवंबर 2025 को पहला आईसीसी महिला वनडे विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया। हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में टीम ने दक्षिण अफ्रीका को हराया, जबकि रेणुका ठाकुर की बेहतरीन गेंदबाजी ने सभी का ध्यान खींचा। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने उन्हें 1 करोड़ रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की। जानें रेणुका का प्रेरणादायक सफर और इस जीत का महत्व।
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भारत की महिला क्रिकेट टीम ने जीता पहला वनडे विश्व कप, रेणुका ठाकुर की गेंदबाजी ने दिल जीते

शिमला: ऐतिहासिक जीत का जश्न


शिमला: 2 नवंबर 2025 को नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में भारत ने क्रिकेट के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा। हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में भारतीय महिला टीम ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर अपना पहला आईसीसी महिला वनडे विश्व कप जीता। इस जीत की खुशी हिमाचल के पहाड़ों तक पहुंची, जहां रोहड़ू की रेणुका सिंह ठाकुर ने अपनी बेहतरीन गेंदबाजी से सबका दिल जीत लिया।


सोमवार की सुबह, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने रेणुका से फोन पर बात की और पूरे प्रदेश की ओर से उन्हें बधाई दी। उन्होंने कहा, “भारत की बेटियों ने मेहनत और आत्मविश्वास का एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। कोई भी सपना ऐसा नहीं है जिसे ये हासिल न कर सकें। हिमाचल की शेरनी रेणुका ने फाइनल में शानदार गेंदबाजी की और विपक्ष पर दबाव बनाए रखा। उनकी हर गेंद में पहाड़ की मजबूती झलकती थी।”


मुख्यमंत्री ने रेणुका की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने सेमीफाइनल और फाइनल दोनों मैचों के महत्वपूर्ण क्षणों को देखा। यह उनके लिए महिलाओं के क्रिकेट मैच देखने का पहला अनुभव था। रेणुका की स्विंग और नियंत्रित गेंदबाजी ने दक्षिण अफ्रीका की बल्लेबाजों को बांधकर रखा। उन्होंने 8 ओवर में केवल 25 रन देकर दबाव की दीवार खड़ी की। यह जीत केवल एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि हर पहाड़ी लड़की के सपनों की उड़ान है।


रेणुका को 1 करोड़ रुपये का पुरस्कार

इस खुशी के मौके पर सुक्खू सरकार ने एक बड़ा ऐलान किया। रेणुका को 1 करोड़ रुपये का नकद पुरस्कार और सरकारी नौकरी दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा, “रोहड़ू की इस बेटी ने विश्व मंच पर हिमाचल का नाम रोशन किया है। हमारी सरकार खेल प्रतिभाओं को हमेशा प्रोत्साहित करती रहेगी।”


रेणुका का प्रेरणादायक सफर

रेणुका का सफर किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है। उन्होंने तीन साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया, और उनकी मां ने क्लास-4 कर्मचारी के रूप में काम करके परिवार का पालन-पोषण किया। उनके चाचा भूपेंद्र सिंह ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें धर्मशाला अकादमी भेजा। कपड़े की गेंद और लकड़ी के बल्ले से शुरू हुई यह यात्रा अब विश्व चैंपियन तक पहुंच गई है। फाइनल में भले ही उन्हें एक विकेट मिला, लेकिन उनकी किफायती गेंदबाजी (इकॉनमी रेट 3.12) ने मैच का रुख बदल दिया।


बीसीसीआई ने टीम को 51 करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया है, जबकि सूरत के ज्वैलर्स ने चांदी का बैट भेंट किया है। मध्य प्रदेश ने क्रांति गौड़ को भी एक करोड़ रुपये का पुरस्कार देने की घोषणा की है।