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महिला क्रिकेट टीम का ऐतिहासिक फाइनल: शांता रंगास्वामी की यादें

भारतीय महिला क्रिकेट टीम 2 नवंबर को साउथ अफ्रीका के खिलाफ वनडे विश्व कप फाइनल में उतरेगी। हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में टीम ने ऑस्ट्रेलिया को हराकर फाइनल में जगह बनाई है। शांता रंगास्वामी ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे महिलाओं को खेल के दौरान और बाहर भेदभाव का सामना करना पड़ा। उन्होंने आज की सुविधाओं और बदलावों की सराहना की। अगर इस बार टीम ट्रॉफी जीतती है, तो यह महिला खेलों के लिए एक ऐतिहासिक पल होगा।
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महिला क्रिकेट टीम का ऐतिहासिक फाइनल: शांता रंगास्वामी की यादें

महिला क्रिकेट का नया अध्याय


नई दिल्ली: भारतीय महिला क्रिकेट टीम 2 नवंबर को डीवाई पाटिल स्टेडियम में साउथ अफ्रीका के खिलाफ वनडे विश्व कप के फाइनल में मुकाबला करेगी। हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में टीम ने सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराकर फाइनल में जगह बनाई है।


अब उनका सामना लैरा वोल्वार्ड्ट की टीम से होगा। इस महत्वपूर्ण अवसर से पहले, भारत की पहली महिला कप्तान शांता रंगास्वामी ने अपने पुराने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे महिलाओं को खेल के मैदान के बाहर भी भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ता था।


शुरुआती दौर की कठिनाइयां

शांता रंगास्वामी 1976 में भारतीय महिला टीम की पहली कप्तान बनीं और 1991 तक खेलीं। उन्होंने बताया कि उस समय भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) से महिलाओं को कोई विशेष सहायता नहीं मिलती थी। टीम को अनारक्षित ट्रेन कोच में यात्रा करनी पड़ती थी, और यात्रा के दौरान धक्के खाना आम बात थी।


"हम बिना रिजर्वेशन वाले डिब्बों में चढ़ते थे, धक्के खाते थे। रात को डॉर्मेट्री में फर्श पर सोना पड़ता था। अपना बिस्तर और जरूरी सामान खुद उठाना होता था। क्रिकेट किट को पीठ पर बैग की तरह बांधते और एक हाथ में सूटकेस पकड़े रहते थे," उन्होंने कहा।


ग्रुप स्टेज की चुनौतियां और वापसी

इस विश्व कप में भारत को शुरुआत में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ग्रुप स्टेज में तीन लगातार हार के बाद खिलाड़ियों को सोशल मीडिया पर गालियां मिलीं। उन्हें सेक्सिज्म और मिसोजिनी का शिकार होना पड़ा, लेकिन टीम ने एकजुट होकर वापसी की और सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराकर फाइनल में पहुंची।


आज की सुविधाएं और बदलाव

शांता ने खुशी जताई कि अब की पीढ़ी को सभी सुविधाएं मिल रही हैं। उन्होंने कहा, "हमने जो मेहनत की, उसका फल अब दिख रहा है। लड़कियों की कोशिश, बीसीसीआई और राज्य संघों का योगदान, सभी ने मिलकर महिला क्रिकेट को ऊंचा उठाया है।"


हाल ही में बीसीसीआई ने महिलाओं के मैच फीस को पुरुषों के बराबर कर दिया है। सालाना कॉन्ट्रैक्ट में अभी भी फर्क है, लेकिन समर्थन पहले से कहीं बेहतर है। जय शाह के बीसीसीआई सचिव रहते हुए सुधार हुए हैं, जिन्होंने महिला क्रिकेट को नई ताकत दी। शांता एपेक्स काउंसिल का हिस्सा थीं और इन बदलावों की गवाह हैं।


नींव का फल और भविष्य

भारत ने 2005 और 2017 में मिताली राज की कप्तानी में फाइनल खेला, लेकिन जीत नहीं मिली। अगर इस बार हरमनप्रीत की टीम ट्रॉफी उठाने में सफल होती है, तो यह महिला खेलों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा।