हरमनप्रीत कौर: मोगा से विश्व मंच तक की यात्रा और भारतीय महिला क्रिकेट की नई पहचान
हरमनप्रीत कौर का अद्वितीय सफर
स्पोर्ट्स : नवी मुंबई के डी.वाई. पाटिल स्टेडियम में सूर्यास्त के समय हरमनप्रीत कौर कैमरों के सामने खड़ी थीं, उनकी आंखों में दृढ़ता और भावनाएं झलक रही थीं। उनके शब्दों में केवल कप्तानी नहीं, बल्कि संघर्ष, उम्मीद और वर्षों की मेहनत की कहानी थी। भारत की महिला क्रिकेट टीम पहली बार वनडे विश्व कप खिताब के इतने करीब थी, और उस क्षण हरमनप्रीत सिर्फ एक कप्तान नहीं, बल्कि करोड़ों सपनों की प्रतीक बन गईं।
मोगा की गलियों से विश्व मंच तक
हरमनप्रीत की यात्रा पंजाब के मोगा की छोटी गलियों से शुरू हुई। बचपन में उनके पास क्रिकेट बैट नहीं था, इसलिए वह हॉकी स्टिक से टेनिस बॉल खेला करती थीं। आस-पास के लोग हैरान होकर कहते थे, 'लड़की होकर ऐसे खेलती है जैसे लड़के।' लेकिन हरमन ने साबित किया कि वह सिर्फ लड़कों जैसी नहीं, बल्कि उनसे बेहतर खिलाड़ी हैं। उनके पिता हरमंदर सिंह भुल्लर, जो खुद क्रिकेटर बनना चाहते थे, ने अपनी बेटी में अपना अधूरा सपना देखा। उन्होंने कहा, 'मैंने उसे बेटे की तरह पाला क्योंकि मैं चाहता था कि वह वो सब हासिल करे जो मैं नहीं कर सका।'
कोच का योगदान
हरमन के कोच कमलदीश सिंह सोढी ने पहली बार देखा कि यह लड़की गेंद को कितनी ताकत से मारती है। उन्होंने मोगा में लड़कियों की टीम बनाई, हरमन को पहला किट दिलाया और उसके भीतर एक सपना बो दिया। यहीं से शुरू हुआ वो सफर जिसने भारतीय महिला क्रिकेट को नई दिशा दी।
2017 की ऐतिहासिक पारी
हरमनप्रीत की 171 रन की ऐतिहासिक पारी, जो उन्होंने 2017 विश्व कप के सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली थी, भारतीय महिला क्रिकेट के इतिहास में मील का पत्थर बन गई। उस दिन दुनिया ने जाना कि भारतीय महिलाएं सिर्फ सुंदर बल्लेबाज़ी नहीं करतीं, बल्कि मैच पलटने का हौसला भी रखती हैं। उस पारी ने उन्हें साहस, शक्ति और आत्मविश्वास का प्रतीक बना दिया।
कप्तान के रूप में संघर्ष
हर जीत के बाद सवाल उठे, हर हार के बाद आलोचना हुई। कप्तानी, स्वभाव और टीम के प्रदर्शन पर चर्चाएं होती रहीं। लेकिन हरमनप्रीत ने हर दबाव को अपने संकल्प में बदला। 340 से ज़्यादा मैच, 8,000 से ज़्यादा रन और कई बड़े खिताबों के साथ उन्होंने बार-बार साबित किया कि वह सिर्फ कप्तान नहीं, बल्कि भारत की महिला क्रिकेट की धड़कन हैं।
2020 में टीम को टी20 विश्व कप फाइनल तक ले जाना, राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतना, एशियाई खेलों में स्वर्ण दिलाना और इंग्लैंड में 23 साल बाद सीरीज़ जीतना उनकी नेतृत्व क्षमता का प्रमाण है। लेकिन इस चमक के पीछे कई रातें थीं जब वह टूटने के करीब थीं, पर हारी नहीं।
भावनाओं की कप्तान
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल जीतने के बाद कैमरे ने जब उन्हें आंखें पोंछते हुए पकड़ा, तो हर किसी ने उनकी सच्चाई देखी। उन्होंने कहा, 'मैं बहुत इमोशनल इंसान हूं, मैं जीतने के बाद भी रोती हूं, हारने के बाद भी। मेरे लिए ये पल बहुत अहम होते हैं।' यही मानवीयता उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग बनाती है।
नई पीढ़ी की प्रेरणा
हरमनप्रीत ने वो पुल बनाया है जो भारतीय महिला क्रिकेट को गुमनामी से पहचान की ओर लेकर गया। 2017 के बाद अनगिनत लड़कियां क्रिकेट को करियर मानने लगीं क्योंकि उन्होंने हरमन में खुद को देखा। रेलवे की सादगी से लेकर विमेंस प्रीमियर लीग की चमक तक, हरमन ने दिखाया कि जज़्बा और मेहनत से कोई भी दीवार पार की जा सकती है।
महानता की ओर एक कदम
2 नवंबर को इतिहास रचने का दिन है। जब वह डी.वाई. पाटिल स्टेडियम में टॉस के लिए उतरेंगी, पूरा भारत उनके साथ सांस लेगा। यह पल 1983 की याद दिलाता है जब कपिल देव की टीम ने वेस्टइंडीज को हराकर भारतीय क्रिकेट को अमर कर दिया था। अब वही मौका हरमनप्रीत के सामने है। अगर वह इस बार ट्रॉफी उठाती हैं, तो यह सिर्फ एक जीत नहीं होगी, बल्कि उन सभी सपनों का न्याय होगा जो वर्षों से इंतज़ार कर रहे हैं।
